ठाकुर जी की भक्ति से विख्यात हो गया फतेहचंद का फतेहाबाद
प्राचीन श्री कृष्ण मंदिर, बड़ा कृष्ण मंदिर भी है पहचान
चिल्ली वाली धर्मशाला के नाम से मिली ख्याति
सन 1777 में हुई थी मंदिर की स्थापना
नई दिल्ली। सेठ फतेहचंद के मंदिर निर्माण कराने के साथ ही फतेहाबाद के श्री कृष्ण मंदिर की ख्याती तेजी से फैलने लगी थी। लाला फतेहचंद ने हरियाणा के फतेहाबाद में 1777 में इस मंदिर का निर्माण करवाया था। उसके बाद इसकी ख्याती दूर-दूर तक फैलने लगी। मंदिर की मान्यता बढ़ने लगी। आज इस मंदिर को प्राचीन श्री कृष्ण मंदिर अथवा बड़ा कृष्ण मंदिर के नाम से भी पहचाना जाता है। शुरू में मंदिर में केवल भगवान श्री कृष्ण और राधा की मूर्ति थी। बाद में यहां शिव मंदिर का भी निर्माण हुआ। दुर्गा मंदिर और कई दूसरे देवी देवताओं के
मंदिर बनवाए गए। समय-समय पर इसका जिर्णोद्धार भी कराया जाता रहा। आखिरी बार करीब 15 साल पहले मंदिर के भवन की मरम्मती हुई थी। फतेहाबाद शहर के पुराने लोग आज भी अपनी आपसी चर्चा में सेठ फतेहचंद जी की धर्मपरायणता और दानवीरता की मिशाल देते हैं।
मुख्य बाजार में स्थित है यह प्राचीन मंदिर
आबादी बढ़ने के साथ ही मंदिर रिहाईशी क्षेत्र के अंदर तक आ गया है। यह प्रचीन मंदिर फतेहाबाद के मुख्य बाजार में स्थित है। जोकि पहले शहर के एक छोर पर हुआ करता था। शहरीकरण की होड में मंदिर के गुंबद दूर से ही अपने अस्तीत्व को बचाने के लिए समय के साथ संघर्ष करते नजर आते हैं। क्योंकि आस पास की कई इमारतें अब मंदिर से भी ऊंची हो गई हैं। धर्मशाला का चलन घटने पर यहां समिति की ओर से आधुनिक सुविधाओं वाला बैंक्वेट हॉल बनवा दिया गया है। फतेहाबाद के मेन बाजार में स्थित यह श्री कृष्ण बड़ा मंदिर इस शहर में कभी धार्मिक आस्था का एकमात्र बड़ा केंद्र था। यहां समस्त नगरवासी एक साथ पर्व त्योहार मनाया करते थे।
चिल्ली वाली धर्मशाला से भी है मशहूर
मंदिर की पहचान चिल्ली वाली धर्मशाला के रूप में भी बनी है। दरअसल मंदिर स्थापना के समय यहां जोहड़ था। और उस जोहड़ी के किनारे ही मंदिर का निर्माण हुआ। और समाज की आवश्यकता के अनुसार यहां मंदिर परिसर में एक धर्मशाला का भी निर्माण करवाया गया। जोहड़ी को स्थानीय भाषा में चिल्ली कहा जाता है इसलिए इस मंदिर की पहचान स्थानीय स्तर पर चिल्ली मंदिर या चिल्ली वाली धर्मशाला बन गई। चिल्ली वाली धर्मशाला परिसर पहुंचते ही एक अलग सी अनुभूति होती है। यहां स्थापित श्री कृष्ण मंदिर हो या दूसरे मंदिर अपने इतिहास को वे खुद बयां करते नजर आते हैं। कभी शिलापट्ट पर उत्कीर्ण तारीखों के जरिए। तो कभी अपनी बनवाट और बसावट के जरिए।
भव्यता एवं प्राचीनता की मिसाल है प्राचीन श्री कृष्ण मन्दिर
हरियाणा के फतेहाबाद कस्बे के धर्मपरायण दानवीर सेठ श्री फतेहचंद के द्वारा भव्य श्रीकृष्ण मंदिर का निर्माण करवाया गया था, जो कि दूर-दूर तक श्री कृष्ण बड़ा मंदिर, फतेहाबाद के नाम से विख्यात हुआ। वर्तमान में यह मंदिर श्री राम सेवा समिति द्वारा संचालित चिल्ली वाली धर्मशाला के परिसर में स्थित है। मंदिर के आगे एक बहुत बड़ा चबूतरा है। चबूतरे के बाद एक बड़ा बरामदा है, फिर मंदिर का विशाला गर्भगृह है। इसमें सुंदर शिल्पकारी से बना एक सिंहासन है। सिंहासन की वेदी पर लगभग 18 इंच लम्बी भगवान श्री कृष्ण की काले रंग की कसौटी के पत्थर से बनी वैसी ही मूर्ति विराजमान है। जैसे कि मथुरा-वृंदावन के प्राचीन मंदिरों में ठाकुर जी की मूर्तियां स्थापित की हुई हैं। श्री राधाजी की मूल प्राचीन मूर्ती को खंडित होने के कारण सन 1969 में हरिद्वार ले जाकर गंगाजी में प्रवाहित कर दिया गया था। उसके स्थान पर जयपुर से लाकर लगभग 14 इंच ऊंची श्वेत संगमरमर की मूर्ती यहां विधिपूर्वक प्रतिष्ठित कर दी गई थी।
सांस्कृतिक और सामाजिक केंद्र बना मंदिर!
एक समय यह मंदिर शहर के लोगों का सांस्कृतिक और सामाजिक केंद्र बन गया था। लोग अपने दिन की शुरूआत यहीं से करते थे। लोग यहां चिल्ली झील में स्नान करते…फिर पूजा पाठ करके अपने-अपने घर लौटते। शाम में आरती होती तो प्रत्येक घर से एक व्यक्ति यहां मौजूद रहता था। पर्व-त्योहार में तो यहां की रौनक देखते ही बनती थी। पूरा शहर इसी मंदिर और यहां बनाई गई धर्मशाला में इकट्ठा हो जाता और सभी एक साथ मिलकर त्योहार मनाते। मगर वर्तमान में इस माहौल में कमी आई है बावजूद उसके कई भक्त ऐसे हैं जो कि रोजाना इस मंदिर में आना नहीं भूलते। ‘जानें अपने मंदिर‘ की टीम को ऐसे ही एक भक्त दिपक अग्रवाल मिले जो कि पिछले 45 वर्षों से मंदिर में रोजाना आ रहे हैं। उनका कहना है कि यहां आने से उन्हें विशेष शक्ति का अहसास होता है। धार्मिक आस्था के साथ ही ये मंदिर सामाजिक सद्भाव और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र भी है।यहां हमेशा प्रकांड विद्वानों को ही पुजारी नियुक्त किया जाता रहा है। जिनकी देखरेख में इस मंदिर की ख्याती खूब फैली और लोगों का विश्वास भी मंदिर के प्रति बना।
श्री राम सेवा समिति के जिम्मे मंदिर का रखरखाव
स्न 1928 में श्रीराम सेवा समिति का गठन होने के बाद इस संपूर्ण मंदिर परिसर का प्रबंध उसके द्वारा होने लगा है। मंदिर के पुजारी श्री संदीप जोशी के अनुसार मंदिर का रखरखाव श्री राम सेवा समिति कर रही है। समिति अपने सामाजिक और धार्मिक कार्यों के जरिए इस मंदिर के प्रति लोगों को जागरुक करने में जुटी हुई है। फिर चाहे वो कांवड़ यात्रा का आयोजन हो या रामलीला का मंचन। इस मंदिर के गौरवशाली इतिहास की तरह राम सेवा समिति के द्वारा होने वाला रामलीला का मंचन भी ऐतिहासिक है। इसके साथ ही श्री राम सेवा समिति ने यहां के धर्मशाला को आम लोगों के जरूरतों के हिसाब से आधुनीक सुविधाओं से लैस करा दिया है।
मंदिर का अनुपम वैभव
चिल्ली के घाटों पर जाने वाले मुख्य मार्ग की दायीं ओर एक शिवालय मौजूद है। खास बात ये है कि एक ही छत के नीचे यहां दो शिवालय बने हुए हैं। दोनों के शिखर लघु गुम्बदाकार रूप में हैं। प्रथम शिवालय में बहुत मनोहारी अष्टकोणीय शिवपिंडी जलहरी के मध्य विराजमान है। इसका वास्तुशिल्प अत्यंत आकर्षक व दर्शनीय है। तो दूसरे शिवालय में गोल शिवलिंग जलहरी के मध्य स्थित है। विगत 50 सालों से उपेक्षित पड़े शिवालय के इस युगल स्वरूप का भी जिर्णोद्धार कराया गया है। यहां स्थापित मां दुर्गा का मंदिर भी बेहद खास है। यहां गर्भगृह में मंदिर आकार में तीन बेदियां बनाई गई हैं। जिसमें मां की मूर्तियां स्थापित हैं। बीच में स्थित मां का रुप बेहद अनोखा है। मां की लघु मूर्ति दीवार पर उभरी हुई लगती है। जिसके दोनों ओर मां के अलग-अलग रुप को दर्शाती बड़ी मूर्तियां हैं। यहां बजरंगबली का भी मंदिर है। जहां वो अपने सिंदूर पुते रुप में ही विराजमान हैं। यहां मंदिर में शीतला माता की भी स्थापना की गई है साथ में बाबा खेतरपालजी महाराज भी मौजूद हैं। व स्थानीय चौगानण माता भी विराजामान हैं।
जीवन का हिस्सा है ये मंदिर
यहां पहुंचते ही आप अध्यात्म में खोने लगते हैं। आप मंदिर के इतिहास को खोजने लगते हैं। मंदिर यहां के लोगों के जीवन का हिस्सा है। कोई ग्रहण हो…तो यहीं स्नान करने के बाद मोक्ष प्राप्त करने से लेकर शादी ब्याह हो तो घुड़चढ़ी यहीं पर होती है। सुबह-शाम की आरती में यहां के हर घर से कोई ना कोई व्यक्ति जरूर होता है। मंदिर के साथ एक विशाल सरोवर भी खुदवाया गया था। जिसके तट पर पुरूषों के लिए दो पक्के घाट, एक महिला घाट व अन्य के लिए एक पृथक घाट मैन बाजार की ओर बनवाया गया। इन सभी निर्माण कार्यों के कारण मंदिर क्षेत्र का समस्त क्षेत्र अत्यंत रमणीक हो गया।
पुरातन पेड़ बनाते हैं वातावरण को मनोरम
शास्त्रों में इसका वर्णन है कि हर मंदिर में पेड़ रहता है। फतेहाबाद के इस प्राचीन कृष्ण मंदिर में पीपल, नीम और वट के पुराने वृक्ष हैं। सुबह ब्रहम मुहुर्त में उठकर श्रीकृष्ण मंदिर परिसर में जाना, सर्वप्रथम पक्षियों के लिए दाना डालना, फिर दातुन करके वहीं घाटों पर स्नान करने के उपरांत मंदिरों में शीश झुकाना, चरणामृत व प्रसाद लेकर घर वापिस लौटना अब भी कुछ लोगों की दिनचर्या में शामिल है।
मंदिर के विशेष पर्व
पंडित संदीप जोशी के अनुसार वैसे तो हर मंगलवार यहां मंदिर में भक्तों का तांता लगता है। मगर जनमाष्टमी और दीपावली के दिन यहां विशेष आयोजन होता है। दूर-दराज से लोग आयोजन में शामिल होने आते हैं। उन्होंने बताया कि प्राचीन समय से ही कृष्ण मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, अन्नकूट और शरद पूर्णिमा के त्यौहार मनाए जाते थे। जन्माष्टमी के दिन समस्त कस्बा वासी मंदिर प्रांगण में रात्रि 12 बजे तक बैठकर भजन कीर्तन करके प्रभू के प्रकट होने पर सभी पुजारी जी से प्रसाद व चरणामृत लेकर अपना व्रत खोलते हैं। इसके अलावा शरद पूर्णिमा की रात्रि को खीर बनाकर चंद्रमा की किरणों में इसे रखा जाता है और अगले दिन प्रातः इसे सभी कस्बावासियों को औषधी रूपी इस खीर के प्रसाद को बांटा जाता है। इसके सेवन से दमा, क्षय और पुरानी खांसी ठीक हो जाती है। गोवर्धन पर्व पर अन्नकूट का उत्सव भी श्रद्धा से मनाया जाता है। 56 प्रकार के व्यंजन बनाकर ठाकुर जी को भोग लगाकर फिर उसे प्रसाद रूप में श्रद्घालुओं को वितरित किया जाता है।
फतेहाबाद में कांवड़ अर्पित करने का चलन इसी मंदिर से हुआ शुरू
फतेहाबाद क्षेत्र के शिव भक्त सैंकड़ों वर्षों से ही हरिद्वार से पैदल कांवड़ों द्वारा गंगाजल लाते रहे हैं परंतु ये कांवड़ किरमारा गांव स्थित कामेश्वर धाम में ही अर्पित करते थे। उस समय कोई भी भक्त अपने गांव या फतेहाबाद के किसी भी शिवमंदिर में कांवड़ अर्पित नहीं करते थे। फतेहाबाद में इस नई परम्परा का शुभारंभ भगवान दास चचान (भानाभक्त) द्वारा श्रावण शिवरात्रि में सन 1956 खड़ी कांवड़ लाकर किया गया। तब से यहां शिवरात्री पर कांवड लाकर जल चढ़ाने का चलन शुरू हो गया। फतेहाबाद में पहली बार कांवड़ लाने व अन्य शिव भक्तों को कांवड़ लाने की प्रेरणा देने का श्रेय भगत भगवान दास को ही जाता है।
कैसे पहुंचेः
यह दिल्ली से 235 किमी दूरी पर स्थित प्राचीन श्री कृष्ण मंदिर हरियाणा के फतेहाबाद के बीच बाजार में है। देश के सभी बड़े शहरों से आने के लिए यहां के लिए यातायात के साधन सहता से उपलब्ध हैं।
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