भक्ति और अध्यात्म का अनुठा केंद्र
ऊर्जा और अध्यात्म का होता है संचार
सनातन संस्कृति का कर रहा है प्रसार
यहां भगवत भक्ति में रम जाता है मन
शक्ति का वो केंद्र है करनाल का गीता भवन
नई दिल्ली। अपनी जड़ों से कटते जाने के आरोपों के बीच करनाल का गीता भवन ऐसा मंदिर है जहां नई पीढ़ी के बच्चों के मुंह से संस्कृत के मंत्रों को उच्चारित होते देखना बेहद सुखद लगता है। ये बच्चे भी हमारे और आपके बच्चों की तरह आम बच्चे हैं। जिन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा स्कूलों में ही पाई है और आगे भी उस सामान्य पढ़ाई को जारी रख सकते थे लेकिन सनातन के प्रति इनकी दृढ़ता इतनी मजबूत है कि ये रोजाना यहां आकर संस्कृत सीखने के साथ-साथ वेद और उपनिषदों का ज्ञान अर्जित करते हैं। ताकि सनातन संस्कृति का संरक्षण हो और वो आने वाली पीढ़ियों में इनके जरिए हस्तांरित होता रहे। करनाल का गीता भवन मंदिर बच्चों को सनातन शिक्षा प्रदान करने में मजबूती से जुटा हुआ है।
हरियाणा में करनाल शहर के सेक्टर 13 में स्थापित ये मंदिर अपनी बनावट से यहां आने वाले लोगों में कौतुहल पैदा करता है। श्वेत संगमरमर और टाइल्स से निर्मित इस मंदिर के प्रांगण में पहुंचते ही आप स्वतः आध्यात्मिक होने लगते हैं। आपका विचलित मन शनैः शनैः स्थिर होने लगता है, यहां की सकारात्मक ऊर्जा में आप गोते लगाने लगते हैं और आप अपने भीतर आत्मिक शांति का अनुभव करने लगते हैं।
नागर शैली में बना सुंदर मदिर
मंदिर के निर्माण में स्थपात्य कला का अद्भूत उपयोग किया गया है। नागर शैली में निर्मित मंदिर के भवन का पूर्ण स्वरुप पंचरथ आकार की तरह लगता है.मंदिर के ग्रीवा पर उत्कीर्ण गीता भवन अनायास ही आपको अपनी ओर आकर्षित करता है। मानो कह रहा हो, इस भाग दौड़ से भरी जिंदगी में कुछ पल तो परमात्मा के लिए निकालिए। गीता के रहस्यों को अपने जीवन में आत्मसात कीजिए। नई शुरूआत कीजिए और मनसा वाचा कर्मणा के जरिए जीवन में हो रहे उथल पुथल को ठहराव दीजिए।
मंदिर का विशाल और भव्य प्रवेश द्वार देख कर ही अंदाजा लग जाता है। इस मंदिर की अंदरुनी बनावट और सज्जा के तो कहने क्या। मंदिर में प्रवेश करते ही सबसे पहले छोटे और चौड़े शिखर वाला मंडपनुमा मंदिर है। जबकि इसके पीछे मंदिर का मुख्य शिखर है। मंदिर के आधार से लेकर शिखर तक हर हिस्से में बारीक नक्काशियां नजर आती है। शिखर के ठीक नीचे गर्भगृह स्थित है। हालांकि यहां कई देवी देवताओं की मूर्तियां एक साथ स्थापित हैं। ऐसे में इसे पूर्ण रूप से गर्भगृह भी नहीं कहा जा सकता। प्रवेश द्वार से प्रवेश करने के बाद एक मंडप है जिसके आगे मंदिर का मुख्य द्वार है। इस द्वार पर लगाया गया दरवाजा लकड़ी से बना हुआ है और बहुत आकर्षक है। यहां गणेश जी की प्रतिमा स्थापित है और दरवाजे के ठीक उपर गायत्री मंत्र उत्कीर्ण है। साथ ही गायत्री माता और मां सरस्वती की सूंदर मूर्ति लगी हुई है।
बांके बिहारी के साथ राधा रानी हैं मौजूद
मंदिर में रूप से श्री कृष्ण का है। मगर उनके अलावा अन्य देवी देवताओं की मुर्तियां भी मौजूद हैं। मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही बांके बिहारी जी की अत्यंत मनोहारी मूर्ति स्थापित है साथ में राधा रानी भी मौजूद हैं। चांदी से निर्मित मंडप में स्थापित इनकी मूर्तियों का श्रृंगार बहुत आकर्षक है। मूर्ति के चेहरे का भाव आनंदित करने वाला है। भगवान के अधरों पर मुस्कान दिखती है।वस्त्र-आभूषण से सजी धजी बांके बिहारी की मूर्ति एकदम जीवंत प्रतीत होती है। इनके सम्मुख पहुंच कर भक्त इनकी भक्ति में स्वमेव तल्लीन हो जाता है।
बांके बिहार के साथ ही श्री हरी की मूर्ति भी अलग से स्थापित है। ये दक्षिण भारतीय शैली मे बनी हुई है। काले प्रस्तर से निर्मित, संभवतः बालाजी के रूप में विराजमान हैं। इसमें नारायण इसके अलावा भी यहां कई देवी देवतओं की मूर्तियां स्थापित हैं। राम, लक्ष्मण और सीता, मां दुर्गा के स्वरूप, सरस्वती, लक्ष्मी, गणपती जी, .भगवान शिव जी समेत सभी देवताओं की सभी मूर्तियां संगमरमर से बनी हुई हैं। सबका श्रृंगार एक से बढ़ एक किया गया हैं यहां भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ स्थापित हैं। यहां मां अबे का पिंडी स्वरुप भी मौजूद है।
गीता भवन में नौग्रह का विग्रह भी मौजूद
सनातन धर्म में ग्रहों को विशेष स्थान दिया गया है…माना जाता है कि इनके स्थान परिवर्तन करने से लेकर किस स्थिति में ये हैं…इस सबका प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। जो कहीं ना कहीं हमारे जीवन में सुख और दुख का कारण बनता है…गीता भवन में नौ ग्रहों का विग्रह भी मौजूद है…राहु…केतु…सूर्य…सभी मंदिर में स्थित कुछ मूर्तियां बेहद खास है और यहां आने वाले सभी भक्तों का ध्यान अपनी ओर बरबस आकर्षित करती हैं। दूसरे मंदिरों में अमूमन ये नहीं दिखती हैं। इनमें से एक है भगवान नरसिंह की मूर्ति भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक, जब उन्होंने भक्त प्रह्लाद के जीवन की रक्षा की और अधर्मी हिरण्यकश्यप का अंत किया। एक मूर्ति है श्रीकृष्ण की जिसमें वो गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाये हुए हैं। यहां आए भक्त घंटों तक इनका अवलोकन करते रहते हैं और निहाल होते हैं, अपने प्रभू के रुप को देख कर। मंदिर में हर त्योहार पर खास आयोजन होता है क्योंकि यहां सभी देवी देवता विराजमान हैं। यहां सुबह-शाम होने वाली आरती में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।
उद्देश्यों को पूरा करने में जुटा
गीता भवन अपनी स्थापना के मूल उद्देश्यों को भी पूरा करने में लगा हुआ है और वो है गीता का प्रचार साथ ही यहां हिंदू धर्म के कर्मकांडों की शिक्षा भी दी जाती है। देश के अलग-अलग हिस्से से आए बच्चे यहां हिंदू धर्म से जुड़े अनुष्ठानों के बारे में सीखते हैं। करनाल के सेक्टर 13 स्थित गीता भवन अपनी स्थापना के बाद से ही सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में लगा हुआ है और तैयार कर रहा है हमारी आने वाली पीढ़ी को। सनातन धर्म के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए। ताकि हम आधुनिकता की सीढ़ी चढ़ते वक्त अपने जीवन की उस पहली सीढ़ी को ना भूल जाएं जो हर सनातनी का आधार है…अधिकार है…।
कैसे पहुंचेः-
हरियाणा के करनाल के सेक्टर 13 में स्थित गीता मंदिर कहीं से भी पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से 140 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर में पहुंचने के लिए रेल व बस सभी माध्यमों से पहुंचा जा सकता है। जीटी रोड़ के जरिये चंड़ीगढ या शिमला अथवा अन्य जगह जाने वाले श्रद्धालु चाहें अपने वाहन से यहां पहुंच सकते हैं। अथवा दिल्ली, चंडीगढ़ या पश्चिमी यूपी के अन्य शहरों से करनाल के लिए राज्य सरकारों की सीधी बस सेवाएं हैं। बस स्टैंड से स्थानीय रिक्सा या टोटो सस्ते दर पर उपलब्ध हैं मंदिर तक पहुंचाने के लिए।
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