भारत का ऐसा मंदिर जहां सिर्फ महिलाएं होती हैं ‘गुरू’
कैसे पाकिस्तान से जुड़ा है मंदिर का इतिहास ?
पुरुषों को रात में मंदिर में जाना मना है !
क्या हैं मंदिर का पंचशील सिद्धान्त ?
नई दिल्ली। देश के कुछ मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश को लेकर समय-समय पर विवाद उठता रहता है. मगर हरियाणा में एक ऐसा भी मंदिर है. जहां न सिर्फ मंदिर से जुड़े सारे काम महिलाएं करती हैं, बल्कि मंदिर की गुरू भी महिलाएं हीं होती हैं. यहां की महिला गुरू को ’परमाध्यक्ष’ कहा जाता है. इसमें मंदिर की ख्सायित और ज्यादा जानकारी जुटाने के लिए जब ”जाने अपने मंदिर” की टीम वहां पहुंची तो पाया कि पंचशील के सिद्धांतों पर चलने वाले इस मंदिर का संबंध पाकिस्तान से भी है और इतना ही नहीं साल 1920 से महिलाएं ही इस मंदिर का प्रबंधन कर रही हैं. मगर हमारे देश में कुछ मंदिर और मठ में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. लेकिन पानीपत में का यह ‘प्रेम मंदिर’ देश के उन विरले मंदिरों में शूमार है, जहां मंदिर से जुड़े सभी काम महिलाएं ही करती हैं और मंदिर की पुजारी भी महिला होती हैं. इस मंदिर से आस्था रखने वाली श्रद्धालु मेघा का कहना है कि प्रेम मंदिर का आकर्षण, आस्था और भरोसा कुछ ऐसा है कि यहां हर कोई खिंचा चला आता है.
कैसे पाकिस्तान से जुड़ा है मंदिर का इतिहास ?
प्रेम मंदिर का इतिहास पाकिस्तान से जुड़ा हुआ है. साल 1920 में महिलाओं का मजबूत यानी सशक्तिकरण के मकसद से श्री शांति देवी महाराज ने लैय्याह शहर जो कि अब पाकिस्तान में हैं इस मंदिर की स्थापना की थी. मंदिर की सेविका सुमन के अनुसार आजादी और देश विभाजन से पहले महिलाओं की स्थिति दयनीय थी. उनके पास ना के बराबर अधिकार थे. तब महिलाओं के उत्थान और उन्हें सशक्त के उद्देश्य से मंदिर की स्थापना की गई. सन 1947 में विभाजन के दौरान, लैय्या ’बिरादरी’ के सदस्यों के साथ मंदिर को पानीपत में स्थानांतरित कर दिया गया. मंदिर की वर्तमान महाराज कांता देवी कहती हैं कि 1947 में जब पूरे पाकिस्तान में हिंसा हुई थी तब यह मंदिर सभी के लिए आस्था का केंद्र था. हिंसा के कारण लोगों में अफरातफरी का माहौल था. लैय्याह तहसील के तत्कालीन तहसीलदार ने प्रेम मंदिर के सदस्यों के लिए ट्रेन में दो विशेष डिब्बे बुक किए थे, लेकिन गुरु जी के स्टेशन पहुंचने से पहले ही वह डिब्बे अन्य लोगों से खचाखच भर गए थे. लैय्या बिरादरी के पहले गुरु भगवान कृष्ण की एक मूर्ति ’ठाकुर जी’ को अपने साथ पानीपत लेकर आए और एक पुराने घर में मूर्ति की स्थापना कर मंदिर की शुरूआत की. उसके बाद साल1957 में इस मंदिर की नींव रखी गई. मंदिर में आज भी पाकिस्तान से श्रीकृष्ण और राधा की लाई प्रतिमा सुरक्षित है इसलिए इस मंदिर का इतिहास पाकिस्तान से जुड़ा बताया जाता है. मंदिर के जरिए पूरे भारतवर्ष में लोगों में प्यार और करुणा फैलाने का प्रयास चल रहा है.
पाकिस्तान में अब भी है मंदिर
आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 1920 में पाकिस्तान में स्थापित प्रेम मंदिर आज भी है और इसका स्वरूप भी वैसे ही है जैसा महाराज जी साल 1947 में छोड़कर आए थे . यह जानकारी हमारी टीम को मंदिर से जुड़े नंद किशोर कौशल ने दी. नंद किशोर ने हमें बताया कि दो साल पहले पाकिस्तान के नईम अफगानी और इमदाद ने प्रेम मंदिर के इतिहास बारे में 7 वीडियो और फोटो यहां भेजे थे। उसे देखकर लगा कि मंदिर आज भी वैसा ही है, जैसा महाराज जी छोड़कर आए थे.
महिलाओं को ही क्यों मिलती है गुरु की गद्दी ?
प्रेम मंदिर की वर्तमान मुखिया कांता देवी जी ने ‘‘जानें अपने मंदिर‘‘ की टीम को बताया कि साल 1920 से शुरू हुई परंपरा आज भी कायम है. मंदिर की गद्दी पर महिलाएं ही विराजमान होती हैं. दरअसल मंदिर की स्थापना करने वाली शांति देवी महाराज ने महिलाओं को शक्ति और अधिकार देने के मकसद से ये नियम बनाया था कि मंदिर में महिला ही गद्दी पर बैठेंगी और मंदिर का संचालन भी महिलाओं के हाथों में ही होगा. ताकि महिलाओं की हक की आवाज उठाई जा सके और महिला विरोधी कुरीतियों को खत्म किया जा सके. साल 1920 से शुरू की गई यह परंपरा पानीपत के प्रेम मंदिर में आज भी कायम है.
मंदिर की अनूठी परंपरा, महिलाएं ही करती हैं सभी काम
हमने आपको मंदिर के इतिहास के बारे में बताया और अब आपको बतातें हैं प्रेम मंदिर की अनूठी परंपरा के बारे में. मंदिर का सारा काम सिर्फ यहां रहने वाली साध्वियां ही करती हैं इस मंदिर में केवल महिलाओं को ही अधिकार प्राप्त हैं. मसलन मंदिर में पूजा, सत्संग, रामचरितमानस और सुंदर कांड पाठ सभी महिलाएं ही करती हैं. वैसे पुरूष श्रद्धालु भी मंदिर में दर्शन करने जा सकते हैं. उनके लिए खास समय निर्धारित है. मंदिर की परमाध्यक्ष श्री कांता देवी महाराज ने बताया कि आस-पास के इलाकों की हजारों महिलाएं मंदिर में रामायण का पाठ करने आती हैं. वह कहती हैं कि कई विधवाएं और जरूरतमंद महिलाएं वहां रहती हैं. वार्षिक तीन दिवसीय कार्यक्रम के अलावा किसी भी पुरुष को रात में मंदिर में जाने की अनुमति नहीं है.
क्या हैं मंदिर का पंचशील ?
महाराज कांता देवी कहती हैं कि हमारा मंदिर पंचशील की पांच मुख्य विचारधाराओं- सत्संग, सेवा, सिमरन, संयम और सदागी पर आधारित है। उन्होंने बताया कि प्रेम मंदिर की शाखाएं हरियाणा के बहादुरगढ़, झज्जर, रोहतक में दुजाना, गुरुग्राम, सोनीपत और गुडियानी में हैं। इसके अलावा उत्तरप्रदेश के कानपुर में भी एक शाखा है. यहां लाचार और गरीब परिवारों की हर संभव मदद की जाती है.
कौन और कैसे बनता है इस मंदिर का मुखिया?
महाराज प्रकाश देवी ने 1980 में अपनी मृत्यु से पहले मंदिर के नए मुखिया के चयन की परंपरा स्थापित की थी. अपने बाद यानी दूसरी गुरु के रूप में उन्होंने अभिषिक्त वसंडी देवी का नाम तय किया था.जिन्होंने पांच साल तक मंदिर का प्रबंधन किया और ’अवधूत संत’ के नाम से प्रसिद्ध हुईं. 1985 में उनकी मृत्यु के बाद चयन की परंपरा के अनुसार वंती देवी मंदिर की तीसरी ’परमाध्याक्ष’ बनीं और उनके कार्यकाल के दौरान प्रेम मंदिर ने दो नए विंगों की स्थापना की. सन 2001 में महाराज वंती देवी की मृत्यु हो गई और प्रकाश देवी को मंदिर के चौथे ’परमाध्याक्ष’ के रूप में अभिषेक किया गया । 2014 में उन्होंने भी देह त्याग दिया। उसके बाद कांता देवी का मंदिर के पांचवे गुरू के रूप में अभिषेक किया गया। कांता देवी महाराज के अनुसार, हर साल 10 से 12 फरवरी को मंदिर का सालाना वर्षगांठ कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जिसमें दुनिया भर से प्रेम मंदिर से जुड़े हजारों अनुयायी शामिल होते हैं.
कौन किस समय रहीं परमाध्याक्ष ?
श्री शांति देवी महाराज– 1920 से 1980 तक
श्री बंसदी बाई महाराज– 1980 से 1985 तक
श्री बंती देवी महाराज– 1985 से 2001 तक
श्री प्रकाश देवी महाराज– 2001 से 2014 तक
श्री कांता देवी महाराज– 2014 से वर्तमान
कृष्ण भक्ति के अलावा अन्य देवताओं की मूर्तियां
नारी शक्ति को समर्पित इस मंदिर में भक्तों की अपार श्रद्धा है. सिर्फ पानीपत ही नहीं देश के कोने-कोने से भक्त भगवान की स्तुति करने यहां आते हैं. कृष्ण की भक्ति के अलावा प्रेम मंदिर में भगवान राम, राधा कृष्ण, भगवान शंकर सहित गुरु महाराज की मूर्तियां स्थापित हैं. मंदिर में हर समय रामचरितमानस, सुंदर कांड और अन्य कर्मकांडों का पाठ चलता रहता है. यहां आने वाले भक्तों का दावा है कि कोई भी दुख हो, कोई भी पीड़ा हो, वो किसी भी संकट से गुजर रहा हो, जो भी इस मंदिर के दर पर आता है, वो कभी खाली हाथ नहीं लौटता, खुशियों से उसकी झोली भरती ही है. भक्तों का दावा है कि मंदिर में उनका कई चमत्कारों से साक्षात्कार होता है. मंदिर के कण कण में प्रेम का वास है. महिला अधिकारों की परंपरा पर कायम इस मंदिर में आप भी आइए और सनातन परंपरा को बल देने और महिला उत्थान और सम्मान को बढ़ाने की मुहिम का हिस्सा बनिये।
कैसे पहुंचे ?
हरियाणा के पानीपत के पचरंगा बाजार में स्थित यह प्रेम मंदिर देश की राजधानी दिल्ली से मात्र 100 किलोमीटर है. वैसे तो पानीपत शहरी इलाका है. दिल्ली से जीटी रोड़ के जरिए करनाल, कुरूक्षेत्र या चंडीगढ़ जाते समय पानीपत में कुछ समय व्यतित कर आप इस मंदिर में दर्शन को जा सकते हैं. अथवा दिल्ली और चंडीगढ़ से रेल-सेवा के जरिये पानीपत स्टेशन पर उतरकर इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। रेलवे स्टेशन से ऑटो के जरिए मंदिर में पहुंचा जा सकता है.