पुष्कर के अलावा सिर्फ कुरूक्षेत्र में ही क्यों है ब्रह्मा जी का मंदिर
भगवान विष्णु के नाभी से हुई ब्रह्मा की उत्पति की कहानी
ब्रह्मा, विष्णु के संबंध की कथा
48 कोस परिक्रमा का क्या है तप
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
नई दिल्ली। सृष्टि की रचना में चार अंक का बड़ा महत्व है। चार वेद, मानव जीवन की चार अवस्थाएं, चार युग, और चार धाम। मनुष्य इन्हीं चार अंकों के इर्द गिर्द उम्र भर घूमता रहता है लेकिन आश्चर्य कि मनुष्य इस चार अंक के मर्म को पूरी तरह नहीं समझ पाता और सृष्टि निर्माण के इसी भेद को समझने के लिए जरूरत होती है परम ब्रह्मा की। और आज हम उसी यात्रा पर हैं जिसमें परमेश्वर तो हैं ही साथ ही एक ऐसी रोचक कथा है कि जो जीवन के मूल तत्व से आपका परिचय करावाएगी। हमारी ‘‘जानें अपने मंदिर‘‘ की टीम ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में श्री ठाकुर द्वारा प्राचीन तीर्थ के श्री नाभी कमल मंदिर में पहुंचकर उसके महात्मय को जाना।
नाथ संप्रदाय के संत, योगी मंगलनाथ ने ‘‘ जानें अपने मंदिर‘‘ की टीम को बताया कि सदियों से इसकी मान्यता है। यहां भगवान विष्णु की नाभि से ब्रह्मा का जन्म हुआ यहां पर दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर प्रांगण में तमाम देवी देवताओं के मंदिर हैं, कुंड भी है। इसका ऐतिहासिक महत्व है। इस मंदिर के बारे अगर एक लाइन में कहा जाए तो धर्म, सनातन परंपरा, भक्ति, आस्था, और इस मंदिर से जुड़ा एक लंबा इतिहास एक साथ खड़े हैं।
श्री ठाकुर द्वारा तीर्थ, नाभि कमल मंदिर
हरे भरे पेड़ों के बीच लाल रंग के किनारे वाला ये सफेद मंदिर दूर से ही दिखाई देता है। इसके आस पास लगे पेड़ पौधे बदलते मौसम के साथ यहां के भक्तिमय माहौल को अलग अलग रंगों में दिखाता है। मंदिर में एक ना मिटने वाली शांति का अनुभव होता है। मंदिर में भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसलिए इसे ठाकुर द्वारा कहा जाता है। वरना आम चलन में मंदिर का नाम नाभि कमल मंदिर है। ब्रह्मा के अलावा यहां कई देवी देवताओं की मूर्तियां विराजमान हैं जिनके दर्शन कर भक्त आशीर्वाद पाते हैं। यहां शिव परिवार के साथ एक शिवलिंग भी है। जहां लोग जल चढ़ाते हैं। यहां शिवलिंग के साथ डमरू विद्यमान है और यहां शिव को नर्मदेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। इसके साथ ही मां दुर्गा, हनुमानजी और शनिदेव की भी मूर्ति स्थापित है। यहां का विशेष आकर्षण ब्रह्मा जी की वो मूर्ति है जो मंदिर के सूखे सरोवर के ठीक बीचो बीच विराजमान है। इस मंदिर के परिसर में एक प्राचीन वृक्ष भी है। मान्यता है कि इस पेड़ पर धागा बाँध कर जो भी मनोकामना मांगी जाती है वो पूरी होती है। श्रद्धालु ईश्वर चंद ने बताया कि ब्रह्मा जी का जन्म विष्णु जी के नाभि से हुआ है। यहां वे बचपन से आ रहे हैं उनकी सभी मनोकामना पूरी होती है।
जानिये कहां हुआ ब्रह्मा का जन्म
पुराणों के अनुसार कुरूक्षेत्र के इस स्थान पर ब्रह्मा जी का जन्म हुआ था। कल्याण के तीर्थांक में भी इस स्थान और इसके महात्मय का वर्णन है। वो ब्रह्मा जो सृष्टि रचयिता हैं। कहते हैं चार भुजाधारी भगवान विष्णु के भीतर जब सृष्टि रचना की इच्छा हुई तो उनकी नाभि से एक कमल निकला। जिसपर चतुर्भुज ब्रह्माजी बैठे हुए थे और ऐसे ब्रह्मा जी का जन्म हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब ब्रह्मा जी उत्पत्ति हुई तो उन्होंने चारों ओर देखा जिसकी वजह से उनके चार मुख हो गए।
मंदिर के प्रबंधक महंत विशाल दास ने हमारी ‘‘ जानें अपने मंदिर‘‘ की टीम को बताया कि यहां ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई थी। वामन पुराण में इस आशय का वर्णन है कि भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन किया करते थे। एक समय भगवान की नाभि से एक कमल के फूल का प्रकाट्य हुआ और उस पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए। नाभि से कमल निकलने से नाभीकमल नाम पड़ा और ब्रह्मा जी का प्रकाट्य होना ब्रह्मा जी की जन्म स्थली कहलाई। तो जब ब्रह्मा जी प्रकट हुए। ब्रह्मा जी की जन्मस्थली से जुड़ी ये कथा इस स्थान पर लोगों की आस्था बढ़ा देती है। क्योंकि मानव जीवन के मूल में तो ब्रह्माजी ही हैं।
ब्रह्मा जी का नाम ब्रह्मा क्यों पड़ा!
क्या आप जानते हैं कि ब्रह्मा जी का नाम ब्रह्मा क्यों पड़ा। दरअसल निर्गुण, निराकार और सर्वव्यापी चेतन शक्ति के लिए ‘ब्रह्मा’ शब्द का प्रयोग बताया गया है और चूंकि ब्रह्मा जी सभी गुणों से परिपूर्ण हैं इसलिए उन्हें ब्रह्मा नाम से पुकारा जाता है। इसका जिक्र अनेकों भारतीय दर्शन शास्त्र में भी आता है। मंदिर के महंत विशाल दास ने आगे बताया कि ब्रह्मा जी कमल पर बैठे बैठे थक गए तो उसकी डंडी पकड़ कर उतरने लगे लेकिन भगवान विष्णु की माया से कौन बचा है आखिर जब ब्रह्मा जी कमल की डंडी के जरिए नीचे उतरने लगे, हजारों वर्ष तक उतरते रहे तो जब अंत नहीं आया तो वापस कमल के फूल के ऊपर आकर बैठ गए। तब ब्रह्मा जी को एक आकाशवाणी हुई कि तप करो। कमल के पत्तों पर होते हुए पुष्कर राज में पहुंच गए और वहां जाकर वो तपस्या करने लगे।
ब्रह्मा जी के सिर्फ 2 ही मंदिर
ब्रह्मा जी के सिर्फ 2 ही मंदिर मिलते हैं। एक पुष्कर जी जो तपस्थली है और दूसरा धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में ब्रह्मा जी की धर्मस्थली है। ये इस तीर्थ का इतिहास है। इस प्राचीन तीर्थ का महत्व ये है कि जो संत महात्मा यहां रहते थे तो वो कहा करते थे कि इस तीर्थ में जो भी स्नान करता था तो उसके चर्मरोग सहित साथ ही कई कई रोग ठीक हो जाते थे।
रोग नाशक तीर्थ
यहां के स्नान का बड़ा महत्व है। माना जाता है कि चर्मरोग समेत सभी रोग यहां ठीक हो जाते हैं। इस मंदिर में समय समय पर उत्सव और त्योहार मनाए जाते हैं। जन्माष्टमी के दौरान जब शोभायात्रा निकाली जाती है। उन दिनों भक्तों का ऐसा तांता लगता है कि तिल रखने की जगह नहीं मिलती। हर तरफ श्रद्धालु भक्ति में लीन दिखाई देते हैं। जयकारों, उद्घोषों से पूरा मंदिर और आस पास के इलाके गूंज उठाते हैं। मंदिर के प्रबंधक, महंत विशाल दास ने ‘‘जानें अपने मंदिर‘‘ की टीम को बताया कि ये मंदिर वैष्णव संप्रदाय के अंतर्गत आता है। मंदिर के अंदर साल में कई प्रकार के प्राचीन समय से कार्यक्रम होते आ रहे हैं, कृष्ण जन्माष्टमी, राम नवमी, हनुमान जयंती, दीपावली, शिवरात्रि। ये सब पर्व यहां धूमधाम से मनाए जाते हैं। प्रमुख रूप से मंदिर में भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी विराजमान हैं। नर्मदेश्वर महादेव जी भी बहुत प्राचीन हैं और जन्माष्टमी पर शोभायात्रा निकलती है।
तप के 48 कोस
उत्सवों के अलावा यहां 48 कोस की परिक्रमा होती है। जिसपर लोगों की बड़ी आस्था है। लोग नंगे पांव 40 किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर इस परिक्रमा को करते हैं। ये तपस्या, संयम और मानव की भावनात्मक श्रेष्ठता है। जिसकी चर्चा सनातन धर्म में मिलती है। इस वजह से ही इस स्थान को तीर्थ कहा जाता है। श्रद्धालु ईश्वर चंद के अनुसार यहां साल में एक बहुत बड़ी परिक्रमा होती है… 48 कोस की परिक्रमा है। दूसरे श्रद्धालु सुरेश के अनुसार लोग हर रोज इस मंदिर में मत्था टेकने आते हैं। जो भी सच्चे दिल से प्रार्थना करता है तो उसकी मन्नत जरूर पूरी होती है। ये विश्व विख्यात मंदिर है इसमें तमाम देवी देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर हैं। श्रद्धालु कालाराम के अनुसार पौराणिक मान्यताओं और कुछ कथाओं के अनुसार ब्रह्मा की पूजा नहीं की जाती और देश में उनके बड़े कम मंदिर हैं। जहां ब्रह्मा जी विराजमान हों। अगर इस मंदिर में ब्रह्माजी विराजमान हैं तो इसकी महत्ता स्वयं ही बढ़ जाती है।
कैसे पहुंचेः-
हरियाणा के कुरुक्षेत्र (थानेसर) के पश्चिम भाग में थानेसर-बाहरी-बगथला सड़क पर स्थित है प्राचीन और ऐतिहासिक तीर्थ स्थल नाभि कमल। इसे नाभिसर भी कहा जाता है। देश की राजधानी दिल्ली से इस स्थान की दूरी 180 किलोमीटर है। बस व रेल से कुरूक्षेत्र पहुंचा जा सकता है। वहां से मंदिर की दूरी 16 किलोमीटर है। कुरूक्षेत्र से यातायात के स्थानीय साधन सहजता से उपलब्ध हैं। अगर आपके पास अपना वाहन है तो आप कुरूक्षेत्र से 20 मिनट में इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
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