300 साल पुराना है मनसागर धाम का इतिहास!
मंदिर में आती है अलौकिक शक्ति, रात्रि में ठहरना है निषेध!
बाबा की सिद्धियों से असाध्य चर्म रोग हो जाते थे ठीक!
नई दिल्ली। महाभारत की युद्धस्थली, ऋषि मुनियों की ज्ञानस्थली और कर्मयोगियों की कर्मस्थली कही जाने वाली हरियाणा के कण-कण में सनातन संस्कृति का विस्तृत इतिहास छुपा हुआ है। इनमें कुछ को तो हम जान गए हैं और कुछ को जानने का प्रयास अब भी कर रहे हैं। हरियाणा के फतेहाबाद में इतिहास के कुछ पन्ने बिखरे हुए हैं और उन्हीं में से एक है बाबा मनसागर धाम। जोकि फतेहाबाद से करीब 18 किलोमीटर दक्षिण में स्थित ढिंगसरा गांव में बना हुआ है।
धाम का इतिहास
मनसागर धाम का इतिहास करीब 300 साल पुराना है। पवित्र धाम के रूप में जिस जगह पर आज ये मंदिर अवस्थित है वहां कभी एक टीले पर बाबा मनसागर गिरी जी का आश्रम था। अपनी कठोर साधना और तप से बाबा जी को कई सिद्धियां मिली हुई थी। वो यहां पर कहां से आए इसकी जानकारी किसी को नहीं है। लेकिन उनकी ख्याती दूर-दूर तक फैल गई थी। पिछले 2 दशक से धाम में सेवा दे रहे पुजारी दिनेश कुमार त्रिपाठी के मुताबिक बाबा मनसागर गिरी जी ने यहीं समाधि ली थी। जिसे आज मनसागर धाम के नाम से जाना जाता है। ढिंगसरा गांव के बुजुर्गों के अनुसार करीब 300 वर्ष पूर्व एक साधू मनसागर गिरी जी ने यहां पर अपनी कुटिया बनाई थी। धाम के पुजारी दिनेश कुमार त्रिपाठी ने ‘जानें अपने मंदिर‘ की टीम को बताया कि वे करीब 20 साल से यहां धाम में पूजा कर रहे हैं। बाबा मनसागर जी यहीं अपनी कुटीया में रहते थे और तपस्या करते थे। वो अपने पूर्वजों की 7वीं पीढ़ी थे। यहीं बाबा जी तपस्या किया करते थे। धरती पर उनका समय पुरा होने पर यहां उन्होंने समाधि ले ली।
मंदिर में झाडू चढ़ाने की है परंपरा
बाबा मनसागर गिरी धाम में आस्था रखने वाले भक्तों पर बाबा की अनोखी महिमा तो है ही। मगर यहां बाबा के मंदिर में भक्तों द्वारा चढ़ाया जाने वाला प्रसाद भी कुछ कम अनोखा नहीं है। यहां मंदिर में सामान्य प्रसाद और नैवेद्य के साथ ही झाड़ू चढ़ाने की परंपरा है। यहां पूजन सामग्री बेचने वाले दुकानों में प्रसाद के साथ झाडू की भी बिक्री होती है। लोगों ने साफ-सफाई में झाडू का इस्तेमाल जरूर देखा होगा। मगर बाबा के इस धाम में प्रसाद के साथ झाडू चढ़ाने की परंपरा अनोखी है।
बाबा की सिद्धियों से असाध्य चर्म रोग हो जाते थे ठीक!
हरियाणा व पंजाब के लोगों में मनसागर धाम के प्रति बडी आस्था है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के द्वारा मनसागर धाम में मत्था टेकने के बाद उनकी हर मन्नतें पूरी होती हैं। साधू मनसागर जी लोगों के चरम रोगों का ईलाज भी करते थे। लोग उनके दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेते और बाबा जी अपनी सिद्धियों के इस्तेमाल से कई असाध्य चर्म रोग ठीक कर दिया करते थे। पुजारी दिनेश कुमार त्रिपाठी के अनुसार बाबा के यहां आने वाले लोगों का चर्म रोग समेत कई दूसरी बीमारियों का समाधान हो जाता है। यहां दूर-दूर से लोग आते हैं। बाबाजी सबकी मनोकामना पूरी करते हैं। दरअसल मंदिर के एक हिस्से में एक छोटा सा कुंड है। जिसे स्थानीय भाषा में जोहड़ी कहा जाता है। यहां भक्तों को निर्देशित करने वाला बोर्ड लगा हुआ है। इस जोहड़ी में स्नान करने पर पाबंदी है। भक्त जोहड़ी का पानी बाल्टी या दूसरे किसी पात्र से निकाल कर जरूर इस्तेमाल कर सकते हैं। .मान्यता है कि ये पानी चर्म रोग से लेकर कई तरह की समस्याएं खत्म कर देता है।
होली-दीपावली पर लगता है भव्य मेला
बाबा मनसागर गिरी का ये धाम आज हरियाणा के फतेहाबाद की पहचान बनता जा रहा है और इसकी ख्याती देशभर में फैलती जा रही है। वैसे तो किसी भी दिन आप यहां पूजा के लिए आ सकते हैं। लेकिन दिवाली और होली पर यहां भव्य आयोजन होता है। पूर्णिमा और अमवास्या पर भी भारी संख्या में भक्त आते हैं। इस मौके पर यहां भंडारा का आयोजन होता है। बाबा मनसागर के समाधि लेने के बाद यहां पर हर साल होली व दीपावली पर भव्य मेले का आयोजन किया जाने लगा। और इस अवसर पर विशेष पूजा होती है। होली दिवाली पर यहां का नजारा बहुत अलग होता है। यहां सामने की सड़क पर 2-3 दिनों तक वाहनों का परिचालन बंद कर दिया जाता है। भक्तगण दूर-दूर से अपनी मन्नत लेकर बाबा के दरबार पहुंचते हैं।
मंदिर में आती है अलौकिक शक्ति, रात्रि में ठहरना है निषेध
मंदिर में शाम की आरती के बाद लोग नहीं आते। मंदिर प्रबंधन से जुडे़ लोग बताते हैं रात 10 बजे से सुबह 4 बजे तक यहां किसी के भी रुकने पर मनाही है। कहा जाता है कि इस दौरान मंदिर में कई अलौकिक शक्तियां जागृत हो उठती हैं। खुद बाबाजी के यहां मौजूदगी का अहसास होता है। मानो वो अपने उस धाम में पूजा-पाठ करने के लिए आए हों। पुजारी, दिनेश कुमार त्रिपाठी के अनुसार मंदिर में रात को अलौकिक शक्तियां आती हैं। रात 10 से सुबह 4 बजे तक कोई नहीं रह सकता…यहां महाराज आते हैं…पूजा करते हैं…बाबाजी जब आते हैं तो अलग ही चेतना रहती है…एक अलग अहसास उस वक्त हो रहा होता है।
जानवरोें पर भी बाबा के आर्शीवाद का प्रभाव, भैंस देने लगती है दूध
बताया जाता है कि बाबा के आशीर्वाद से इंशानों की हर समस्या का समाधान हो ही जाता है। यदि किसी की भैंस दूध नहीं देती तो बाबा के आर्शीवाद से वो दूध देने लग जाती है। घर की कोई परेशानी है तो उससे मुक्ति मिल जाती है। खाज-खुजली भी यहां आने से ठीक हो जाती है। हर बाधा कट जाता है। बशर्ते यहां के जोहड़ी से बाल्टी से पानी निकाल कर। उस पानी से नहाना है या उसे पीना है।
प्रकृति की गोद में बना मंदिर देखने में भी है भव्य
मंदिर परिसर के आसपास का वातावरण पूरी तरह से दिव्य और भव्य है। हरे-भरे पेड़ पौधों के बीच बने धाम का वातावरण पूरी तरह से मनोरम और रमणीक है। प्रकृति की गोद में बने मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। वैसे धाम के मुख्य मंदिर के निर्माण में किसी खास शैली का उपयोग तो नहीं किया गया है। बावजूद ये बहुत भव्य लगता है। काफी हद तक इसका आकार गुरद्वारे की तरह है। मंदिर के उपर बिलकुल बीच में मुख्य गुंबद है जबकि किनारे की तरफ छोटे-छोटे गुंबदों का निर्माण किया गया है। मंदिर के नीचे का मुख्य हिस्सा चौकोर है। जिसमें चारों तरफ 3-3 मेहराबदार दरवाजे बने हुए हैं…मंदिर के मुख्य द्वार में शिल्प कला का बेहतरीन इस्तेमाल दिखता है। एकओर सुंदर बेलबुटों की नक्काशी है। तो हाथियों के सर वाला वंदनवार भी उपर के हिस्से में है। दो हाथी की मूर्तियां अपने पूर्ण आकार में हैं। सनातन मंदिरों के निर्माण में हाथी, घोड़े और कई दूसरे जानवरों के चीत्र का नक्काशी में खूब इस्तेमाल होता है। मंदिर का मौजूदा स्वरुप करीब डेढ़ दशक पुराना है। भक्तों के सहयोग से इस मंदिर का जिर्णोद्धार कराया गया है। मंदिर के नये भवन के निमार्ण हेतु करीब 14 महीने तक काम चलता रहा और 25 मिस्त्री दिन रात नक्काशी करते थे। लेकिन जब ये बन कर पुरा हुआ तो इसका सौंदर्य देखते ही बन रहा था। आज भी यहां कई तरह के निर्माण भक्त और बाबा की कमेटी कराते रहती है।
गुलाबी व लाल पत्थरों से निर्मित मंदिर
गुलाबी व लाल पत्थरों से निर्मित मंदिर के परिसर में प्रवेश करते ही एक चौड़ा श्रद्धालु पथ है। जिस पर श्रद्धालुओं की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए क्यू कॉम्प्लेक्स बनाया गया है। नये भवन के खत्म होते ही मंदिर का प्रांगण में एक छोटा सा भव्य मंदिर है। पत्थर से बने इस मंडपनुमा मंदिर की नक्काशी बहुत सुंदर है और ये दक्षिणी भारतीय मंदिरों की तरह लगता है। यहां भगवान शिव अपने पुरे परिवार के साथ विराजमान हैं। यहीं पर एक बड़ा हवनकुंड भी है।
मंदिर के गर्भगृह के बाहर दोनों तरफ अक्षय पात्र रखा हुआ है। जिसमें यहां आने वाले भक्त गेहूं का दान करते हैं। जिसका इस्तेमाल भंडारे में होता है। अंदर दाहिनी तरफ बाबा मनसागर गिरीजी की मूर्ति है तो दूसरी तरफ हनुमानजी की सिंदूर लीपी हुई मूर्ती। हनुमान जी के बगल में एक सिंदूर पूती हुई शिला है। उस पर भी बजरंगबली की आकृति की झलक दिखती है और दोनों मूर्तियों के बीच में एक अखंड जोत जलता है। बाबा जी की वरमुद्रा वाली प्रतिमा यहां स्थापित की गई है। सफेद दाढ़ी और भगवा चोले से उन्हें सुसज्जित किया गया है। उन्हें पगड़ी भी पहनाई गई है। बगल में बाबाजी का कमंडल पानी भर कर रखा रहता है। सुबह-शाम आरती के बाद बाबाजी का वस्त्र बदला जाता है और उन्हें पगड़ी पहनाई जाती है।
कैसे पहुंचे मंदिरः फतेहाबाद के भट्टू कलां तहसील पहुंचने के बाद करीब 11 किलोमीटर का सफर तय करते हुए गांव ढिंगसरा में मंदिर का प्रवेश द्वार मुख्य मार्ग के ठीक बगल में स्थित है। चंडीगढ़ से इसकी दूरी 230 किमी है। और दिल्ली से इसकी दूरी 240 किमी है। यहां रेल, बस व अपने निजी वाहन से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
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