नई दिल्ली। महाभारत काल से जुड़े तमाम प्रसंग आपको बखूबी पता ही होंगे। लेकिन ‘जाने अपने मंदिर‘ की हमारी टीम आपको ऐसे सनातन मंदिरों और धर्म स्थलों से परिचय करा रही हैैं, जिनकी कहानी महाभारत काल और पांडवों से जुड़ी है। अपने 13 वर्ष के वनवास और 1 वर्ष के अज्ञातवास में पांडवों ने ना सिर्फ जगह-जगह अपने इष्टदेव की पूजा की, बल्कि 14 वर्ष की अवधि में पूरे भारतवर्ष का भ्रमण भी किया साथ ही पांडवों ने हर जगह शिवलिंग की स्थापना के साथ-साथ मंदिर, तालाब और गुफाओं का निर्माण भी कराया।
आज आपको एक ऐसे ही जगह के बारे में हम बताने जा रहे हैं, जहां 5100 वर्ष पुराना महादेव का स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है। यह शिवलिंग आज भी पल-पल आकार बदलता है। यहां पहाड़ी के उपर विद्यमान कदम के पेड़ से अभी भी लगातार पानी निकल रहा है। वैसे तो यह मंदिर मुख्य रूप से भगवान शिव का है। मगर मंदिर के उपर पहाड़ी पर स्थित कदम के पेड़ की उत्पत्ति का प्रसंग भगवान श्री कृष्ण से जुड़ है। तो पेड़ से निकलने वाले पानी का प्रसंग युधिष्ठर और अर्जुन से जुड़ा हुआ है।
कहते हैं यहां भगवान शिव ने पांडवों को अपना आशीर्वाद दिया और स्वयंभू शिवलिंग की स्थापना हुई। ऐतिहासिक मंदिर से थोड़ी दूरी पर विद्यमान कदम के पेड़ से निकलने वाला जल औषधीय गुणों से भरपूर है और यह 24 घंटे निकलता रहता है। मान्यता है इसमें स्नान और इसके सेवन से कुई दुर्लभ बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं।
महादेव महादेव महादेवेति यो वदेत।
एकेन मुक्तिमाप्नोति द्वाभ्यां शम्भू ऋणी भवेत।।
अर्थातः शिव मंदिर में प्रवेश करके विराजित शिवलिंग के समीप महादेव, महादेव, महादेव के तीन बार उच्चारण मात्र से भगवान आशुतोष इतने प्रसन्न हो जाते हैं कि वो अपने भक्त या साधक को मोक्ष का अधिकारी बना देते हैं।
मंदिर का इतिहास, 5100 वर्ष पुराना है स्वयंभू शिवलिंग!
हरियाणा का अरावली पर्वत तो अपने मनोरम वादियों के लिए कई काल खण्डों से प्रसिद्ध है। लेकिन इसके नूंह की वादियों के बीच स्थित पाण्डव कालीन प्राचीन नल्हड़ महादेव का मंदिर आध्यात्मिक उर्जा के केंद्र के रूप में आज भी प्रसिद्ध है। इस प्राचीन मंदिर को नलहरेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। 5100 वर्ष पुराने इस मंदिर में महादेव का स्वयंभू शिवलिंग साक्षात विराजमान है। चुकी मंदिर के शिवलिंग का संबंध महाभारत काल से है। इसलिए इस शिवलिंग को 5100 वर्ष पुराना माना गया है।
इस मंदिर को आखिर नल्हड़ महादेव मंदिर इसलिए कहा जाता है क्योंकि पहले यहां सिर्फ जंगल ही जंगल था। यहां से 2 नहर निकलती थीं और नहरों की वजह से ही इसका नाम नल्हड़ महादेव मंदिर पड़ा। यहां के शिवलिंग की लालिमा देखते ही बनती है। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने कौरवों और पांडवों के बीच समझौता कराने के लिए इस जगह को चुना था।
वैसे अरावली पर्वत प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ अपने आंचल में हज़ारों साल पुराने इतिहास को समेटे हुए है। पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान अरावली पर्वत पर भी कुछ समय बिताया था इसके प्रमाण हमारे ग्रंथों तक में विद्यमान हैं। नलहरेश्वर महादेव शिव मंदिर से तकरीबन 500 फुट से अधिक की ऊंचाई पर एक कदम का पेड़ है। उस कदम के पेड़ से सदियों से साफ सुथरा और मीठा जल बह रहा है।
महाभारत काल से है मंदिर का संबंध
मंदिर के मुख्य पुजारी श्री दीपक शर्मा ने हमारी ‘जानें अपने मंदिर‘ की टीम को बताया कि इस शिव मंदिर की कथा महाभारत काल से जुड़ी है। जब पाण्डवों को अज्ञातवास हुआ तो पांडवों के साथ भगवान श्रीकृष्ण भी यहां आए थे और यहां पर कुछ समय बिताया था। इस दौरान पाण्डवों ने भोलेनाथ की पूजा की जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और फिर यहां स्वंयभू शिवलिंग स्थापित हो गया।
खूबसूरत पहाड़ियों के बीच घीरे इस शिव मंदिर की अनुपम और अलौकिक छवि देखते ही बनती है। मंदिर का भव्य द्वार ही मंदिर की विशालता का आभास करा देता है। द्वार पर ही तमाम देवताओं की मूर्ति नजर आ जाती है। धन-धान्य की देवी लक्ष्मी हैं। तो विद्या की देवी सरस्वती भी विराजमान हैं। मां लक्ष्मी और सरस्वती के मध्य भगवान गणेश जी भी हैं।
यहां आज भी पल पल बदलता है शिवलिंग का आकार!
यहां के मंदिर में विद्यमान शिवलिंग की अद्भुत विशेषता है जो कहीं और देखने को नहीं मिलती। यहां शिवलिंग का आकार कभी एक समान नहीं रहता है। पुजारी दीपक शर्मा ने शिवलिंग को दिखाते हुए हमारी ‘जानें अपने मंदिर‘ की टीम को दिखाया कि कैसे पल-पल बदलता है शिवलिंग का आकार। शिवलिंग की लंबाई घटती बढ़ती रहती है। सच्चे मन से जो भी बाबा के दरबार में हाजिरी लगाता है, उसकी इच्छा प्रभु अवश्य पूर्ण करते हैं। इस शिवलिंग में भगवान शिव पूरे परिवार के साथ मौजूद हैं। शिवलिंग में आपको पूरे शिव परिवार के दर्शन हो जाएंगे। शिवलिंग से लिपटे नागराज, जनेऊ, स्वास्तिक, माता की आकृति, गंगा की धारा और एकदंत गणेश जी की छवि नजर आ जाएगी शिवलिंग पर उकेरी ही स्पष्ट नजर आती है।
अभी भी निकल रहा है कदम के पेड़ से पानी!
इस शिवमंदिर में आकर भक्त अपने सभी दुखों का निवारण तो पाते ही हैं, लेकिन यहां आने वाले लोग एक और स्थान के दर्शन करना नहीं भूलते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं चमत्कारी और रहस्यमयी कदम के वृक्ष की। जिसके जड़ से 24 घंटे जल निकलता रहता है। कदम के पेड़ को देवों का वृक्ष कहा जाता है। भगवान कृष्ण की बाल लिलाओं में कदम के पेड़ का कई बार जिक्र मिलता है। यहां मंदिर के समीप स्थित ये कदम वृक्ष अपने औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है। इसका इस्तेमाल बहुत सारे रोगों के उपचार में किया जाता है।
जानिये कैसे हुई कदम के पेड़ की उत्पति!
इस कदम वृक्ष की कथा महाभारत काल से ही जुड़ी है। मान्यता है जब भगवान कृष्ण के इस स्थान पर कदम पड़े तो इस कदम वृक्ष की उत्पत्ति हुई। जानकार बताते हैं कि श्रीकृष्ण भगवान ने कौरवों और पांडवों का समझौता कराने के लिए इस जगह को चुना था। मान्यता है कि जहां-जहां भी भगवान श्रीकृष्ण के चरण पड़े वहां पर अक्सर कदम का पेड़ मिलता है। मंदिर के पीछले हिस्से में अरावली की पहाड़ियों पर स्थित है ये कदम का वृक्ष और यहां 287 से अधिक खड़ी सीढ़ियां है, जिनसे चढ़कर ऊपर पहुंचा जा सकता है। सीढ़ियां मंदिर समिति की तरफ से बनाई गई हैं ताकि लोग आसानी से कदम के पेड़ तक पहुंचकर उससे बहने वाले पानी को देख सकें या फिर अपने घर बर्तन में भरकर ले जा सकें।
किसका प्यास बुझाने को अर्जुन ने चलाया था बाण?
कहा जाता है कि धर्मराज युधिष्ठिर के प्यास लगने पर अर्जुन ने अपना बाण चलाया था और तभी से कदम वृक्ष की जड़ों से जल प्रवाहित हो रहा है। इस कदम के पेड़ से बहने वाला जल कभी खत्म नहीं होता। ये इतना स्वच्छ और निर्मल है, कि इसके आगे मिनरल वाटर भी कुछ नहीं। स्थानीय लोगों के अनुसार इस कदम के पेड़ से निकलने वाला पानी कभी खराब नहीं होता बल्कि रोगों से लड़ने में ये बेहद साधक सिद्ध होता है।
दरअसल इस कदम के पेड़ की जड़ों के नीचे एक कुंडली बनी हुई है, जिसमें मोटर या पाइप से पानी निकालने के अलावा अगर किसी बर्तन से पानी निकाला जाए तब भी उसकी मात्रा कम नहीं होती है।
मंदिर का वर्तमान भव्य रूप
मंदिर के मुख्य पुजारी श्री दीपक शर्मा ने हमारी टीम को बताया कि पहले इस मंदिर के चारों ओर जंगल ही जंगल था और कच्ची झोपड़ी में एक शिवलिंग था, लेकिन स्वामी ज्ञान गिरी महाराज ने इस नए मंदिर परिसर का निर्माण कराया। वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन मंदिर समिति के चेयरमैन सरदार जीएस मलिक के जिम्मे है। मंदिर समिति के चेयरमैन सरदार जीएस मलिक के अनुसार वर्ष 1983 में श्री श्री 1008 ज्ञान गिरी जी महाराज ने मंदिर परिसर को भव्य रूप देना शुरू किया था। आज भव्य मंदिर बनकर तैयार है। उन्होंने बताया कि मुख्य द्वार को करीब 20 साल पहले बनाया गया था।
पूजा-पाठ का समय, विशेष त्यौहार एवं आयोजन
मुख्य पुजारी दीपक शर्मा के अनुसार मंदिर में प्रत्येक दिन सुबह-शाम शिवजी की पूजा होती है। सुबह 6 बजे भगवान की आरती होती है और शाम को फूलों से श्रृंगार किया जाता है। प्रत्येक सोमवार को सुबह भोलेनाथ का महाकालेश्वर के रूप में श्रृंगार होता है। भगवान को चांदी का मुकुट धारण कराया जाता है। वैसे तो हर दिन, हर सोमवार मंदिर में भक्तों की भीड़ लगती रहती है। लेकिन श्रावण माह में भोलेनाथ के दर्शन को यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। हर सोमवार को भगवान की विशेष पूजा अर्चना और आरती होती है। यहां केवल आसपास से ही नहीं बल्कि दूर दराज से लोग शिव जी का आशीर्वाद पाने और कदम के वृक्ष के दर्शन के लिए पूरे परिवार सहित यहां पधारते हैं। इस मंदिर में दर्शन के लिए नियमित आने वाले वृंदावन निवासी राम नारायण शास्त्री ने बताया कि पहाड़ियों से घिरे नल्हड़ महादेव मंदिर का विहंगम दृष्य देखकर लोग बरबस ही यहां आने को मजबूर हो जाते हैं। क्योंकि यहां भगवान के आशीर्वाद के साथ ही औषधीय और चमत्कारी कदम वृक्ष के भी दर्शन का सबको सौभाग्य मिलता है।
कैसे पहुंचे मंदिरः-
नलहरेश्वर महादेव का मंदिर हरियाणा के नूंह शहर से करीब 3 किलोमीटर दूर है। दिल्ली से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर में अपने वाहन से आसानी से पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा दिल्ली से नूंह के लिए हरियाणा परिवहन निगम की बसें आसानी से मिल जाती हैं। नूंह में ठहरने के लिए सरकारी गेस्ट हाउस के अलावा सस्ती दरों पर होटल भी मौजूद हैं। मंदिर के पास धर्मशाला भी है।