जहां कपिल मुनि ने की तपस्या!
जिनके एक श्र्राप से हुई सगर के 60 हजार पुत्रों की मृत्यु!
मां गंगा के धरती पर अवतरण से जुड़ी है कहानी!
यहां धसा था दानवीर कर्ण के रथ का पहिया!
बद्रीनाथ की है समाधी !
स्नान से मिलता है गंगा सागर सरीखा फल!
नई दिल्ली। ईश्वर का निवास स्थान कहा जाने वाला हरियाणा ऋषियों की तपस्थली भी है। पुरातन काल में तमाम बड़े संत महात्माओंए ऋषि.मुनियों ने यहां रहकर तप किया है। स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता का ज्ञान भी हरियाणा के कुरूक्षेत्र में दिया। सनातन संस्कृति के ओझल देवालयों को प्रचारित करने के प्रयास में जुटी जानें अपने मंदिर की हमारी टीम जब हरियाणा के कैथल जिले के कौल गांव में पहुंची तो उसने एक ऐसी पावन जगह देखी जहां स्वयं भगवान विष्णु के पंचम अवतार कहे जाने वाले कपिल मुनि ने तपस्या किया था। उस पावन तीर्थ से जुड़ी एक.एक रोचक जानकारी हम आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
कपिल मुनि जी के बारे में भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं……”सिद्धों में मैं कपिल हूँ “।
श्रीमद्धभागवत के अनुसार अनुसारः
पञ्चमः कपिलो नाम सिद्धेशः कालविप्लुतम् प्रोवाचासुरये साङ्ख्यं तत्त्वग्रामविनिर्णयम् ।।९।।
यानी पांचवें अवतार में वे सिद्धों के स्वामी कपिल के रूप में प्रकट हुए और तत्त्वों का निर्णय करने वाले सांख्य शास्त्र का उपदेश दिया।
जहां कपिल मुनि ने की तपस्या!
हरियाणा में कपिल मुनि के दो तपस्या स्थल प्रमुख हैं। पहला स्थल कौल है, जहां कपिल मुनि ने तपस्या की तो दूसरा स्थल कलायत है जहां उन्होंने अपनी माता श्री को सांख्यशास्त्र का ज्ञान दिया था। बताया जाता है कि माता देवहूति जी को योग ज्ञान देकर उनकी आज्ञा लेकर कपिल जी पूर्वोत्तर को चले गए। वहां पर गंगा सागर के समीप भी तपस्या की। गीता में कपिल मुनि को श्रेष्ठ ऋषि कहा गया है। उन्हें प्राचीन ऋषि माना जाता है। आस्था और श्रद्धा की प्रतीक उनकी तपस्थली कौल गांव के बीच स्थित है। इसे कपिल मुनि तीर्थ के रूप में जाना जाता है। बताया जाता है इस स्थन पर कपिल मुनि ने तपस्या की थी। महाभारतए वामन पुराण और भागवत पुराण में इस तीर्थ का वर्णन है। तीर्थ के पंड़ित अभिषेक के अनुसार इस जगह पर कपिल मुनि जी का आगमन हुआ था और यहां उन्होंने तपस्या की थी। कपिल मुनि का यह तीर्थ सिद्ध पीठ है। और इस प्राचीन तीर्थ पर जो भी श्रद्धा भाव से आते हैं उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। तीर्थ के सेवादार, महंत दलारा पुरी जी ने बताया कि यहां कपिल मुनि जी ने तपस्या की थी। और यहां स्थित प्राचीन शिव मंदिर महाभारत काल से भी पुराना है। कौल गांव में स्थित इस तीर्थ में सरोवर है जिसमें स्नान का काफी महत्व है।
कपिल मुनि की महिमा!
श्रीमद्भगवत के अनुसार कपिल मुनि को विष्णु के 24 अवतारों में पांचवां अवतार माना जाता है। इनको अग्नि का अवतार और ब्रह्मा का मानस पुत्र भी कहा गया है। सनातन शास्त्रों के अनुसार कर्दम ऋषि ने विवाह पूर्व सतयुग में सरस्वती नदी के किनारे भगवान विष्णु की घोर तपस्या की थी। जिसके फलस्वरूप भगवान विष्णु कपिलमुनि के रूप में कर्दम ऋषि के यहां जन्में। कपिल मुनि की माता स्वायंभुव मनु की पुत्री देवहूति थी। कलाए अनुसुइया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुंधती तथा शान्ति आदि कपिल मुनि की बहनें थीं। तो भागवत पुराण के अनुसार कपिल मुनि के माता-पिता कर्दम ऋषि और देवहुति थे । कर्दम ऋषि ने संन्यास लेकर जब गृह त्याग दिया तब कपिल जी ने अपनी माता को योग के ज्ञान का उपदेश दिया था जिससे उनकी मुक्ति हो गयी। उद्धव गीता में बताया गया है कि कपिल मुनि के सांख्य योग को ही भगवान कृष्ण ने उद्धव को प्रदान किया था। महाभारत में कपिल मुनि के उपदेश को कपिल गीता के नाम से जाना जाता है। कपिल मुनि तीर्थ के पास रहने वाले कौल निवासी स्तवीर सिंह के अनुसार केंद्र सरकार के महकमों के लोगों ने भी कई बार यहां आकर इसके निर्माण काल का आंकलन करने की कोशिश की मगर वे इसकी स्टीक जानकारी नहीं मालूम कर सके हैं।
श्राप से सगर के 60 हजार पुत्रों की मृत्युए गंगा के धरती पर अवतरण से जुड़ी कहानी!
ये वही कपिल ऋषि हैं जिनके एक श्राप मात्र से राजा सगर के 60 हजार पुत्रों की मृत्यु हो गई थी। और सगर के मृत पुत्रों को मोक्ष प्रदान करने के लिए ही पतीत पावनी मां गंगा को धरती पर अवतरित होना पड़ा। इसलिए कपिल ऋषि का गंगा के पृथ्वी पर आगमन से सीधा सम्बन्ध है। राजा सगर ने अपने साम्राज्य की समृद्धि के लिए एक अनुष्ठान करवाया । एक अश्व उस अनुष्ठान का एक अभिन्न हिस्सा था जिसे इंद्र ने ईर्ष्यावश चुरा लिया। सगर ने उस अश्व की खोज के लिए अपने सभी पुत्रों को पृथ्वी के चारों ओर भेजा। उन्हें वह अश्व ध्यानमग्न कपिल मुनि के निकट मिला। यह मानते हुए कि अश्व को कपिल ऋषि द्वारा ही चुराया गया हैए वे उनका अपमान करने लगे और उनकी तपस्या को भंग कर दिया। ऋषि ने कई वर्षों में पहली बार अपने नेत्रों को खोला और सगर के बेटों को देखाए उनके क्रोध से की नेत्र अग्नि से वे सभी के सभी साठ हजार जलकर भस्म हो गए। अंतिम संस्कार न किये जाने के कारण सगर के पुत्रों की आत्माएं प्रेत बनकर विचरने लगीं। तब दिलीप के पुत्र और सगर के वंशज भगीरथ ने इस दुर्भाग्य के बारे में सुना और उसके बाद उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वे गंगा को पृथ्वी पर लायेंगे ताकि उसके जल से सगर के पुत्रों के पाप धुल सकें और उन्हें मोक्ष प्राप्त हो सके। राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए ब्रह्मा जी की तपस्या की और गंगा जी को पृथ्वी पर लेकर आए।
बद्रीनाथ की समाधी !
कपिल मुनि तीर्थ क्षेत्र में लगभग 15 फुट गहरा सरोवर है। सरोवर के मध्य महान योगी संत बद्री नारायण जी की समाधि बनी है। इस समाधि तक पहुँचने हेतु पुल बना है। कौल गांव के निवासी ईश्वर सिंह ने जानें अपने मंदिर की टीम को बताया की इस समाधि पर दूध चढ़ता है।
स्नान से मिलता है गंगा सागर सरीखा फल!
कहते हैं सब तीर्थ बार.बार गंगासागर एकबार । मगर हरियाणा में कपिल मुनि जी का यह तीर्थ ऐसा है जहां स्नान से गंगासागर में स्नान के बराबर का महत्व प्राप्त होता है। इस तीर्थ में स्नान की यह महिमा इसलिए है क्योंकि यहां के कुण्ड में सर्वप्रथम कपिल मुनि ने स्नान किया था। तब से इस तीर्थ में स्नान की महिमा गंगा सागर में स्नान की तरह हो गई। तीर्थ के पंडित अभिषेक के अनुसार कुण्ड़ में स्नान की मान्यता है कि यहां सर्वप्रथम कपिल मुनि ने स्नान किया था। और इस पावन धाम में स्नान से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। उन्होंने बताया कि मकर संक्रांति के दिन यहां हर वर्ष यहां मेला लगता है और यज्ञ होता है। दूर-दराज से लोग इस तीर्थ में पहुंचकर स्नान करते हैं और पुण्य के भागीदार बनते हैं। और कपिल मुनि का आर्शीवाद लेते हैं। सेवादार, महंत दलारा पुरी जी के अनुसार मान्यता है कि इस कुण्ड़ में स्नान का महत्व गंगा सागर में स्नान से मिलने वाले पुण्य की तरह है। कुण्ड को हर चार साल बाद खाली करते हैं मगर कभी भी इसका पानी खत्म नहीं होता।
यहां धसा था दानवीर कर्ण के रथ का पहिया!
कौल गांव के पूर्व में कपिल मुनि तीर्थ विद्यमान है तो पश्चिम में गढ़रथेश्वर तीर्थ है। गढ़रथेश्वर तीर्थ की मान्यता है कि यहां महाभारत के दानवीर कर्ण के रथ का पहिया यहां धंस गया था। तब महापराक्रमी अर्जुन के द्वारा कर्ण का वध कर दिया गया था। बताया जाता है कि महाभारत के युद्ध में बुरी तरह से घायल होकर अपने अंतिम समय का इंतजार करते हुए शरशैय्या पर पड़े हुए भीष्म पितामह के शरीर त्याग के समय भी वेद व्यास सरीखे ऋषियों के साथ कपिल मुनि जी वहां उपस्थित थे।
सुरंग की मौजूदगी
बताते हैं कि श्री कपिल मुनि धाम को जोड़ने वाली सुरंग से जुड़े तथ्य आज भी अस्तित्व में है। तीर्थ के सेवादार महंत दलारा पुरी के अनुसार मंदिर के सामने से सुरंग अब भी है। मगर सुरक्षा कारणों की वजह से उपयोग में नहीं है।
छोटी ईटों से बना भारतवर्ष का सबसे बड़ा तीर्थ
बताया जाता है कि कौल गांव का नाम पहले के समय में कपिल ग्राम था। जो कपिल मुनि का संकेत है, बाद में यह कपिल से कौल बन गया। यह तीर्थ तीन तरफ से छोटी ईटों का बना हुआ है और इसके चौथी तरफ विशाल पुल है। तीर्थ क्षेत्रफल में छोटी ईटों से बना हुआ यह तीर्थ छोटी ईंटों से बना भारतवर्ष का सबसे बड़ा तीर्थ है।
तीर्थ का परिदृश्य
इस तीर्थ के एक तरफ राधा-कृष्ण मंदिर है तो दूसरी तरफ शिवालय तथा साथ में हनुमान मंदिर भी है। राधा-कृष्ण मंदिर जो बहुत प्राचीन है। और इसका शिखर बहुत विशाल है। इस मंदिर में हस्तकला चित्र मौजूद है जो कि कई सौ वर्ष पुराने है। सरोवर तट पर प्राचीन शिव मंदिर है, जो लगभग 25 फुट ऊँचा है। इसकी छत्त पर सुंदर चित्र बने हैं। इनमें वाराह अवतार, नरसिंह अवतार, पूतना वध, कृष्ण रास, विष्णु दानव युद्घ, तपस्या में रत ऋषि, सुंदर फूल-पत्तियां बनी हैं। वामन पुराण में वर्णित कौल तीर्थ प्राचीन व दर्शनीय तीर्थ है। इसमें बने शिव-पार्वती, हाथी की तस्वीर, साधु-संतों व वृक्ष तले कृष्ण-रास व शेष नाग शय्या वाले प्राचीन भित्तिचित्र बहुत सुंदर हैं।
तीर्थ लगभग 4 एकड़ भूमि में है। तीर्थ स्थित मन्दिर के मण्डप की दीवारों पर हाथ में तलवार लिए किसी योद्धा एवं संन्यासी का चित्राँकन किया गाया है। गर्भगृह की भित्तियों में वानस्पतिक अलंकरण के साथ-साथ चारों भित्ति पटों पर जगन्नाथए बलभद्र एवं सुभद्रा के चित्राँकन के साथ शेषशायी विष्णु, गीता उपदेश, हनुमान, रुक्मणी हरण, शिवपार्वती, गणेश आदि का चित्रण भी दर्शनीय है। और यहां हनुमान जी का प्राचीन मंदिर है। पुजारी पंड़ित अभिषेक जी के अनुसार वैसे तो लोग इस तीर्थ पर रोजाना आते हैं। मगर सोमवार, मंगलवार और रविवार को यहां पूजा के लिए विशेष दिन है। मंदिर की आरती सुबह 5 बजे तो शाम को 7 बजे होती है। तो मकर संक्राति और दीपावली के दिन यहां बड़ा आयोजन होता है। मकर संक्राति के दिन भक्त लोग कपिल मुनि का जन्मदिन मनाते हैं। कौल निवासी सतवीर सिंह के अनुसार यहां स्थित शिव मंदिर महाभारत काल का है। कपिल मुनि जी तपस्थली पर स्थित मंदिर का निर्माण 800 वर्ष पुराना है। यहां स्नान के बाद शिवालय पर जल चढाने, मंगलवार को हनुमान जी की मूर्ति के दर्शन करने और रविवार को कपिल मुनि का पूजन करने से विशेष फल मिलता है। वैष्णव पद्धति से यहां की पूजा होती है।
सरोवर महत्व- स्नान से दूर होता है चर्म रोग
सरोवर के तट पर प्राचीन मंदिर भी बना है। इसमें एक कुण्ड है, जिसका पानी कभी समाप्त नहीं होता। मान्यता है कि इस तीर्थ के ऊपर एक कुआं है। जिसका संपर्क कुण्ड से है। सरोवर के उत्तर में एक उत्तर मध्यकालीन कृष्ण मन्दिर है। कपिल मुनि नामक यह तीर्थ कैथल से लगभग 27 किमी. की दूरी पर कौल नामक गाँव में स्थित है। कौल निवासी ईश्वर सिंह के अनुसार यहां स्नान से मस्सा समेत तमाम चर्म रोग की बिमारीयां दूर होती हैं। सतवीर सिंह ने बताया मस्से सरीखे चर्म रोग का निवारण यहां के स्नान से ठीक हो जाता है। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से स्नान करने और मन्नत मांगने से चर्म रोग समेत तमाम बिमारीयां ठीक हो जाती हैं।
प्राचीन संस्कृत महाविद्यालय हुआ नष्ट
कौल का संस्कृत महाविद्यालय देश.दुनिया में प्रसिद्ध था। तीर्थ के पंड़ित और सेवादार के अनुसार मंदिर में पुरातन समय में संस्कृत महाविद्यालय चलता था। जहां संस्कृत की शिक्षा दी जाती थी। दूर.दराज से लोग संस्कृत की शिक्षा लेने और देने के लिए यहां आते थे। यहां से विद्या ग्रहण कर बहुत से विद्वानए ज्योतिषियों ने विदेशों में भी भारत का नाम रोशन किया है। इनमें माधवचार्य जी एक थे। मगर देखरेख और संचालन ठीक न होने की वजह से यह प्रसिद्ध संस्कृत विद्यालय नष्ट हो गया।
तीर्थ में बहाई जाती हैं अस्थियां
कपिल मुनि तीर्थ की महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गांव में किसी की मृत्यु होने पर अस्थियों को कुरुक्षेत्र या हरिद्वार में प्रवाहित करने की बजाय कपिल मुनि तीर्थ में ही बहाया जाता है। यहां मौजूद प्राचीन कुंड का पानी की प्राकृतिक देन है।
औलाद की कामना भी होती है पूरीए,अंग्रेज भी हुआ मूरीद
यहां कपिल मुनि तीर्थ की महिमा इतनी है कि सच्चे मन से मांगने पर हर मनोकामना पूर्ण होती है। विदेशों तक के लोग इसकी महिमा के मूरीद हैं। कौल निवासी ईश्वर सिंह ने टीम को बताया कि तीर्थ के पुराने पंड़ित ईश्वर जी के साथ एक व्यक्ति घुमने आए थे वे पोस्ट मैन थे। और उनको कोई औलाद नहीं थी। यहां तीर्थ घुमते समय उनके मन में औलाद की कामना हुई। और कपिल मुनि जी के आर्शीवाद से एक वर्ष के भीतर ही उनकी मन्नत पूरी हुई और उन्हें औलाद की प्राप्ती हुई। इसी तरह एक अंग्रेज भी यहां तीर्थ घुमने आया था। उसको भी कोई औलाद नहीं थी उसने मन्नत मांगी और उसकी मनोकामना भी पूरी हुई।
ब्याह-शादी की भी मन्नतें होती हैं पूरी
कौल के निवासी टींकू अग्रवाल के अनुसार यहां लोगों के विवाह.शादी की भी मन्नतें पूरी होती हैं। कई ऐसे लोगों के शादी-विवाह की मन्नतें यहां पूरी हुई हैं। मन्नत पूरी होने के बाद लोग दोबारा से आकर पूजन अर्चना करते हैं।
अयोध्या की तर्ज पर दीपावली, पशुओं तक के नाम से जलते हैं दीयें
कौल निवासी सतवीर सिंह के अनुसार यहां दीपावली का दिन विशेष रहता है। उस दिन यहां की छटा देखते ही बनती है। अयोध्या की तर्ज पर यहां दीपावली का आयोजन करते हुए बीते वर्ष दीपावली के दिन 71 हजार दिये जलाए गए। इस वर्ष दीपावली में 1 लाख से उपर दिए जलाने की योजना है। उन्होंने बताया कि घर के सभी सदस्यों के नाम से दीये जलाये जाते हैं। यहां तक घर के सभी सदस्यों के अलावा पशुओं तक के नाम से दीये जलाए जाते हें।
संकट हरती हैं मछलियां
स्थानीय गांव कौल के निवासी टींकू अग्रवाल ने ष्ष्जानें अपने मंदिरष्ष् की टीम को एक विशेष जानाकरी साझा करते हुए बताया कि सरोवर की मछलियां गांव वालों के संकट को हरती हैं वे उनके संकट को अपने उपर ले लेती हैं। उन्होंने बताया कि गांव में कोई भी बड़ी समस्या आने पर कुण्ड की मछलियां मर जाती हैं। मान्यता है कि वे गांव के संकट को अपने उपर ले लेती हैं इसलिए उनकी मृत्यु हो जाती है।
कैसे पहुंचे कपिल मुनि तीर्थ
दिल्ली से करीब 220 किमीण् की दूरी पर हरियाणा के कैथल जिले के पुण्डरी तहशील में स्थित कौल गांव में है प्रसिद्ध कपिल मुनि तीर्थ और पवित्र सरोवर। और कैथल बस अडडे से इसकी दूरी मात्र 28 किमीण् है। यदि आप रेलमार्ग से यहां जाना चाहते हैं। तो करनाल या कुरूक्षेत्र तक रेल से सफर करें। वहां हरियाणा सरकार की बसें और स्थानीय सवारी भी सहज उपलब्ध हैं। सड़क मार्ग से कैथल पहुंचकर भी यहां पहुंचा जा सकता है। कैथल से बस व स्थानीय साधन सहज उपलब्ध हैं।
कपिल मुनि तीर्थ
गांव- कौल, तहशील-पुण्डरी
जिला- कैथल, हरियाणा
पुजारी- पंड़ित अभिषेक
संपर्क- 9996090550
संपादक टिप्पणी- “जानें अपने मंदिर” की टीम ने जब इस प्रसिद्ध कपिल मुनि तीर्थ पहुंची तो पाया कि यहां विकास की नितांत आवश्यकता है। इस प्राचीन तीर्थ की कई महत्वपूर्ण चीजें लुप्त होने के कगार पर हैं। कपिल मुनि व गढ़रथेश्वर जैसे तीर्थों के तो अभी अवशेष बचे हैं। कई वर्ष पहले विकास बोर्ड कुरुक्षेत्र इस तीर्थ पर अपना बोर्ड लगा दिया मगर बोर्ड ने इस तीर्थ के जीर्णोद्धार के लिए अभी तक कोई उचित कदम नहीं उठाया। सरोवर का पानी वैसे तो कभी सुखता नहीं है मगर उसमें स्वच्छता का ध्यान देना जरूरी है। गंदगी की वजह से पानी स्नान योग्य नहीं दिखता। यहां का प्राचीन मंदिर पूरी तरह नष्ट हो गया है। तो अन्य पुरातन चीजों की भी सुध नहीं है।
संपादक नोट- यदि आपकी जानकारी में इस मंदिर या तीर्थ से जुड़ी और कोई जानकारी हो अथवा आपके पास अन्य किसी पुरातन मंदिर की जानकारी हो तो कृप्या उसे व्हाटसेप नंबर +91 8287033387 पर या contact@templesnet.com पर हमें साझा करें। हम आपकी सुदृढ़ जानकारी से अपनी जानकारी को संशोधित करेंगे और नई जानकारियों को अपने प्लेटफार्म पर स्थान प्रदान करेंगे।