कौन हैं मां कामाक्षी, क्यों है इतनी प्रसिद्धि
जानिये छात्रों के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं मां कामाक्षी
देश की राजधानी दिल्ली में श्री देवी कामाक्षी मंदिर के निर्माण का क्या है महात्म्य
नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े शिक्षण संस्थान जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में बेशक समय-समय पर देश विरोधी नारे लगते रहते हैं। लेकिन वसुधैव कुटुम्बकम् का मूल संस्कार लिए सनातन संस्कृति के रक्षकों ने सदैव इस संस्थान की भलाई और इसमें शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों के हित को सर्वोपरि रखा है। जेएनयू के छात्रों पर मां कामाक्षी की कृपा सदैव बरसती रहे इसके लिए मां कामाक्षी का मुख विश्वविद्यालय की ओर रखा गया। मां कामाक्षी के बारे में यही कहा जाता है कि विद्यार्थियों को खासकर इनकी पूजा करनी चाहिए। हम आपको देश की राजधानी दिल्ली में ंजेएनयू के ठीक सामने स्थित श्री देवी कामाक्षी मंदिर की जानकारी दे रहे हैं। जो कि कांची कामकोटि पीठ के द्वारा संचालित होता है।
श्री देवी कामाक्षी मंदिर के निर्माण का क्या है महात्म्य
वैसे तो देवी कामाक्षी का मूल मंदिर कांचीपूरम में है। मगर वैदिक संस्कृति और साहित्य के प्रसार को ध्यान में रखते हुए कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य पूज्नीय ज्येंद्र सरस्वती जी ने 16 अक्टूबर, 1986 को जेएनयू के ठीक सामने स्थित इस मंदिर की स्थापना की। मंदिर निर्माण से पहले पूरी तरह से आगम के नियमों का पालन किया गया। आज इस मंदिर का महात्मय इतना है कि यहां के स्थानीय लोग और आने वाले पर्यटक एक बार इस मंदिर के दर्शन के लिए जरूर आते हैं। मंदिर में मां कामाक्षी के विग्रह के साथ गणेश जी की पूजा होती है। मंदिर की स्थापना का उद्देश्य वेद वेदांग पर आधारित शिक्षा का विस्तार, भारतीय सनातन परंपरा का ज्ञान, धर्म और आस्था के प्रति जागरूकता फैलाना इत्यादि था। मंदिर में आदि शंकराचार्य की भी प्रतिमा है जिसकी पूजा की जाती है। मंदिर आकर्षण का केंद्र इससे भी है कि इसका वास्तु दक्षिण शैली के आधार पर बना है। दिल्ली में दक्षिण के स्थापत्य कला वाला ये अनोखा मंदिर लोगों को बरबस ही अपनी ओर खींचता है।
मां कामाक्षी का मुख क्यों है जेएनयू की ओर
श्री देवी कामाक्षी का मुख जेएनयू की ओर होने का भी एक विशेष मकसद है। मंदिर से जुड़े लोगों ने हमारी ‘‘जानें अपने मंदिर‘‘ की टीम को बताया कि मंदिर स्थापना के समय मां का मुख सीधे जेएनयू की तरफ करने को लेकर संशय था। मगर शंकराचार्य ज्येंद्र सरस्वती जी के निर्देश पर मां का मुख जेएनयू के सामने रखा गया। जो कि रोड़ के दूसरी ओर स्थित है। दरअसल दक्षिण भारत में मंदिरों की स्थापना और उसके निर्माण में आगम शास्त्र और स्थान भाव के नियमों को प्रमुखता दी जाती है। उस लिहाज से मां का रूख सीधे रोड़ की ओर नहीं सकता। मगर मंदिर स्थापना से पहले यहां आए शंकराचार्य ज्येंद सरस्वती जी को इसकी जानकारी लगी तो उन्होंने मंदिर निर्माण की व्यवस्था में जुटे लोगों को बताया कि मां के मुख के सामने दिवार बनाने के बजाय मां का मुख जेएनयू की ओर ही रखें। ताकि विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों पर मां की कृपा पड़ती है। मां का आर्शीवाद उन्हें मिलता रहे। इसी वजह से मां कामाक्षी का मुख जेएनयू की ओर है। श्री देवी कामाक्षी मंदिर समिति के बोर्ड ऑफ ट्रस्टी के सदस्य श्री पोलाची एस गणेशन के अनुसार मां के मुख के सामने जेएनयू विश्वविद्यालय परिसर है। जिसका सकारात्मक प्रभाव विद्यार्थियों पर पड़ता ही है साथ ही ये संयोग उनके लिए वरदहस्त के समान है। वे .कहते हैं विद्यार्थियों के लिए के माता कामाक्षी की पूजा बेहद जरूरी है।
कौन हैं मां कामाक्षी, क्यों है इतनी प्रसिद्धि
देवी कामाक्षी के नेत्र इतने कमनीय और सुंदर हैं कि उन्हें कामाक्षी की संज्ञा दी गई। वस्तुतः कामाक्षी में मात्र कमनीय या काम्यता ही नहीं, बल्कि कुछ बीजाक्षरों का महत्व भी है। ‘क‘कार ब्रह्मा का, ‘अ’कार विष्णु का और ‘म‘कार महेश्वर का वाचक है। इसीलिए कामाक्षी के तीन नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरूप हैं। माना जाता है कि सूर्य-चंद्र उनके प्रधान नेत्र हैं, अग्नि उनके भाल यानी माथे पर चिन्मय ज्योति से प्रज्ज्वलित तृतीय नेत्र है। कामाक्षी में एक और सामंजस्य है ‘का‘ सरस्वती का, ‘माँ‘ महालक्ष्मी का द्योतक है। इस प्रकार कामाक्षी के नाम में सरस्वती और लक्ष्मी का युगल-भाव समाहित है। इसलिए कहा जाता है कि विद्यार्थियों को खासकर इनकी पूजा करनी चाहिए। कामाक्षी का अर्थ करुणा देने वाली हैं। कामाक्षी को मन की कामना पूर्ति की देवी भी मानते हैं। इन्हें सौम्य दुर्गा भी कहते हैं। प्रचलित मान्यताओं की माने तो माता कामाक्षी को शिव पत्नी माता सती का अवतार कहा जाता है।
कामाक्षी मंदिर का इतिहास
आदि गुरू शंकराचार्य ने देश को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में पिरोने के लिए तमिलनाडु के कांचीपुरम में कांची कामकोटि पीठ की स्थापना की थी। उसी कांची पीठ द्वारा दिल्ली में देवी कामाक्षी का मंदिर बनवाया गया। इसका उत्थान इसलिए भी हुआ क्योंकि चोल पांड्या काल में कांची नगरी उनकी राजधानी रही है। लिहाजा वहां स्थित कामाक्षी पीठ दक्षिण के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बन गया। मान्यता है कि मां का विग्रह साक्षात कल्याणमयी है।
अध्यात्म के विस्तार का केंद्र
इंडियन एस्ट्रोलॉजिकल संस्थान के द्वारा यहां ज्योतिष केंद्र भी संचालित होता है। जो हर आयु वर्ग के शिक्षार्थियों को ज्योतिष वास्तु हस्त रेखा का प्रशिक्षण देता है। मंदिर प्रबंधन से जुड़े लोगों के अनुसार पिछले 23वर्षो से ये संचालित है जो कि 2 सत्रों में चलता है। मंदिर प्रांगण में एक ध्यान केंद्र भी है जिसका उद्देश्य अलौकिक आध्यात्मिक चेतना का विस्तार करना है। श्रद्धालु, डा. राव के अनुसार यह मंदिर विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा और ध्यान केंद्रित करने का अच्छा स्थान है। यहां आ कर अच्छा लगता हैं।
शिवागम ग्रंथ पर आधारित पद्धति से होती है पूजा
यहां मंदिर में पूजा शिवागम ग्रंथ पर आधारित पद्धति से होती है। इस मंदिर में साल में तीन बार विशेष रूप से रामनवमी, दशहरा और कार्तिक मास की पूर्णिमा पर चंडी का हवन होता है। शुक्रवार को विशेष तौर यहां आकर पूजा करने की परंपरा है। और भक्त लोग मां को निंबू चढ़ाते हैं। कहते हैं मां को प्रसन्न करने के लिए ललिता सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। उससे सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। यहां मंदिर में लंबे अरसे से आ रहे श्रद्धालु दंपत्ति अभिषेक और उनकी पत्नी का कहना है कि वे हर शुभ परंपरा का प्रारंभ यही से करते है यहां बचपन से आ रहें हैं। पेशे से शिक्षक श्रद्धालु, श्रीकांत पंडा का कहना है कि वे नित्य प्रति आरती में सम्मलित हो मां के दर्शन करते हैं। वे आगे कहते हैं की यहां भगवती साक्षात हैं।
कैसे पहुंचेः-
दक्षिण दिल्ली मे जेएनयू के ठीक सामने स्थित इस मंदिर में पहुंचने के लिए आप अपने साधन के अलावा मेट्रो अथवा बस से पहुंच सकते हैं। मुनिरका तक मेट्रो या बस से पहुंच कर मंदिर तक पैदल पहुंचा जा सकता है।
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