क्या है चमत्कारिक कथा?
कब और किसने कराया मंदिर का निर्माण?
बांके बिहारी के सामने बार-बार क्यों डाला जाता है पर्दा!
निधिवन का आखिर क्या है रहस्य?
नई दिल्ली। भारत की एक ऐसी जगह जो श्री कृष्ण की लीलाओं के लिए जानी जाती है। कृष्ण के भक्तों के लिए यह जगह सजीव स्वर्ग है। जहां बाल गोपाल की लीलाओं के साक्षात प्रमाण मिलते हैं। जहां के कण-कण में वासुदेव का वास है। लेकिन आखिर ऐसी क्या वजह है कि हर साल लाखों भक्त यहां पहुंचते हैं। ‘‘ जानें अपने मंदिर‘‘ की हमारी टीम ने वृंदावन पहुंचकर कृष्ण की लीलाओं को करीब से समझने का प्रयास किया।
कब और किसने कराया बांके बिहारी मंदिर का निर्माण
उत्तर प्रदेश का प्राचीन शहर मथुरा, जहां से १० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है वृंदावन, ये वो जगह है जो भगवान कृष्ण के चमत्कारों से भरी पड़ी हैं। ऐसा ही एक चमत्कारी धाम है बांके बिहारी का मंदिर। .प्राचीन शैली में बना बांके बिहारी का मंदिर बहुत ही खूबसूरत हैं, यहां पर भक्त अपने सारे दुख दर्द भूल जाते हैं। बांके बिहारी मंदिर की स्थापना श्री कृष्ण के परम भक्त स्वामी हरिदास जी ने की थी। वो मशहूर गायक तानसेन के गुरु थे। स्वामी हरिदास जी संगीत प्रेमी थे और संगीत के जरिए निधिवन में रहकर भगवान कृष्ष्ण की भक्ति किया करते थे। कहा जाता था वो कृष्ण की भक्ति में इस कदर लीन हो जाते थे, राधा और कृष्ण खुद उन्हें दर्शन देते थे। उनके संगीत में जादू था जिसे सुनने के लिए राधा-कृष्ण स्वयं आते थे। एक बार जब पं. हरिदासजी संगीत गा रहे थे, तब उनके सामने साधना राधा और कृष्ण की दो मूर्तियां प्रकट हुईं। तब हरिदास जी ने कहा कि मेरे लिए राधा-कृष्ण एक ही है, और उनके आग्रह पर राधा और कृष्ण एक में समाहित हो गए थे और एक श्यामवर्णी विग्रह प्रकट हुआ था। स्वामी हरिदास ने इन्हें नाम दिया बांके बिहारी। कुछ दिनों तक उन्होंने निधिवन में ही इस विग्रह की पूजा की उसके बाद वृंदावन में ही एक भव्य मंदिर बनाकर मूर्ति को स्थापित किया। ताकि आम लोग भगवान कृष्ण के चमत्कारों का अहसास कर सकें और उनके दर्शन कर सकें। यह मंदिर साल 1864 में बनकर तैयार हुआ था। बांके बिहारी का विग्रह भगवान कृष्ण और राधे रानी का प्रतिरूप है। इसलिए बांके बिहारी जी की मूर्ति का आधा श्रृंगार स्त्री का और आधी मूर्ति पर पुरुष का श्रृंगार किया जाता है।
बांके बिहारी के सामने क्यों डाला जाता है पर्दा
बांके बिहारी जी का मंदिर चमत्कारों से भरा पड़ा है। यहां आने वाले भक्तों ने उनके चमत्कारों को महसूस किया है। बांके बिहारी जी का विग्रह इस कदर आकर्षित करता है कि भक्तों की आंखों से झर-झर आंसू निकलने लगते हैं। उनकी प्रतिमा में ऐसा आकर्षण है, कि एक बार उन्हें देखने वाला भक्त उन्हें निहारता ही रहता है। ऐसा लगता है मानों उन्हें कृष्ण ही मिल गए हों। मान्यता है कि जो भक्त सच्ची श्रद्धा के साथ उनकी भक्ति में रम जाता है, नंद लाल उन्ही के साथ चले जाते हैं। इसिलिए मंदिर के पुजारी बांके बिहारी की प्रतिमा को बार-बार पर्दा करते रहते हैं, ताकि कोई एक टक उन्हें ना देख सके और भक्तों को दर्शन देने के लिए बांके बिहारी वृंदावन में ही रहें।
साल में एक बार होते हैं चरणों के दर्शन
पंड़ित गोपी गोस्वामी के अनुसार रोजाना सुबह और शाम भगवान की आरती की जाती है। लेकिन हैरानी की बात ये है कि मंगला आरती देखने का सौभाग्य भक्तों को साल में एक ही बार मिलती है। सिर्फ जन्माष्टमी के मौके पर ही मंदिर में मंगला आरती होती है। इसी तरह से भक्त बांके बिहारी के दर्शन तो रोजाना कर सकते हैं लेकिन उनके चरणों के दर्शन साल में सिर्फ एक बार ही होते हैं। बैशाख मास की अक्षय तृतीया पर भक्त बांके बिहारी के चरणों के दर्शन कर सकते हैं।
क्या है निधिवन रहस्य
बांके बिहारी मंदिर के साथ-साथ वृंदावन में एक और चमत्कारी स्थान है निधिवन, निधिवन वो जगह है जहां पर भगवान कृष्ण राधा और गोपियों के साथ रास लीला रचाते थे। पुजारी कुलदीप शर्मा ने बताया कि आज भी राधा और कृष्ण यहां रास लीला रचाने आते हैं। लेकिन उनकी रासलीला का कोई नहीं देख पाता है। शाम ढ़लते ही निधिवन के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। यहां तक की निधिवन की तरफ खुलने वाली खिड़किया और दरवाजे भी लोग बंद कर देते हैं। शाम होने के बाद पक्षी भी निधिवन से चले जाते हैं। कहा जाता है कि एक बार कृष्ण के एक भक्त ने उनकी रासलीला को देखने की कोशिश की थी, वो निधिवन के दरवाजे बंद होने से पहले निधिवन में जाकर छिप गया था, सुबह जब दरवाजा खुला और लोगों ने उसे देखा तो वो अंधा हो चुका था। उसके बाद से किसी भी इस तरह की हिम्मत नहीं की।
माखन और मिश्री का लगता है भोग
बांके बिहारी के दर्शन के लिए देश के साथ-साथ विदेशों से भी भक्तों को भीड़ उमड़ती है। साल भर बांके बिहारी के मंदिर में भक्त पहुंचते हैं और उन्हें माखन मिश्री का भोग लगाते हैं। जन्माष्टमी, होली और सावन के मौके पर यहां पर विशेष कार्यक्रमों का आयोजन होता है। जिनमें लाखों भक्त शामिल होते हैं। यहां आने वाले भक्तों पर कान्हा की कृपा हमेशा बरसती रहती है।
कैसे पहुंचे बांके बिहारी के धाम
बांके बिहारी मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन मथुरा में है। वृंदावन मुथरा से महज १५ किलोमीटर की दूरी पर है। रेलवे स्टेशन के बाहर ही वृंदावन जाने के लिए आपको बस, टैक्सी और ऑटो की सुविधा मिल जाएगी। तो वहीं बस से सीधे वृंदावन पहुंचा जा सकता है, यहां पर बस स्टैंड है जहां से उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों की बसें चलती हैं। विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए दिल्ली का इंदिरा गांधी एयरपोर्ट सबसे नजदीक है, यहां से बस या ट्रेन के जरिए वृंदावन पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से मथुरा-वृंदावन की दूरी मजह १५० किलोमीटर है। ठहरने के लिए सस्ते से लेकर हर तरह की सुविधाएं है। धार्मिक और सामाजिक संगठनों की धर्मशालाएं भी काफी संख्या में हैं।
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