जानें अपने मंदिर
कश्मीर से कन्याकुमारी और कंबोडिया से लेकर नेपाल से लेकर मलेशिया, इंडोनेशिया और मिस्र तक में चर्चित मंदिरों की एक लंबी फेहरिस्त है। इनमें से अधिकांश मंदिरों से हम परिचित हैं प्रयास करते हैं कि अपने जीवनकाल में वहां जरूर जाएं। लेकिन इनसे इतर भी देश में कई ऐसे मंदिर हैं जो भारतीय स्थापत्य शैली और वास्तुकला की उत्कृष्टता से लैस तथा महत्व और पौराणिकता से परिपूर्ण होते हुए भी राष्ट्रीय क्षितिज से धूमिल रहे। कई तो ऐसे हैं जो जर्जर स्थिति में है तो कई ऐसे हैं जिनसे लोग परिचित तक नहीं हो सके हैं। अब बिहार के कैमूर जिले में स्थित मुंडेश्वरी देवी के मंदिर को ही ले लीजिए। किसे पता है कि यह भारत का सबसे पुराना मंदिर है। बहुत कम ही लोगों को पता है कि कश्मीर घाटी में लगभग आठवीं शताब्दी में बना ऐतिहासिक मार्तण्ड सूर्य मंदिर भी है। दक्षिण भारत में द्रविड़ शैली के लाखों मंदिर हैं। इस शैली के मंदिरों के कुछ सर्वश्रेष्ठ उदाहरण तमिलनाडु में हैं। इनमें से एक चोल साम्राज्य के शक्तिशाली राजा, राजाराज प्रथम द्वारा निर्मित तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर है, जो अपनी भव्यता और असाधारण स्थापत्य विशेषताओं के लिए जाना जाता है। इसी प्रकार कर्नाटक के मैंगलोर शहर के मध्य में शरावू महागणपति मंदिर स्थित है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर लगभग 800 साल से भी अधिक प्राचीन है।
मंदिर केवल प्रार्थना या पूजा के स्थान नहीं हैं। वे हमेशा आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र होते हैं। वे सभी मानव जाति के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रसार करने के लिए शक्ति केंद्र हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने इसी उद्देश्य के लिए मंदिरों के बारे में सोचा था। वे चाहते थे कि आम लोग उनके पास जाकर अपनी दैनिक आध्यात्मिक ऊर्जा को विकसित और नवीनीकृत करें। आगम शास्त्र के अनुसार, प्रत्येक मंदिर एक पवित्र स्थान है। इसका एक अनूठा आध्यात्मिक आयाम है। हम ऐसे ही लाखों मंदिरों में अक्सर जाते भी हैं। पूजा-अर्चना करते हैं और मनोकामना पूर्ण करने की उम्मीदों के साथ चढ़ावा अर्पण करके आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन कभी हम यह जानने की कोशिश नहीं करते कि हम जिस मंदिर में गए उसका क्या इतिहास है, उसके निर्माण की क्या कहानी है और उसका क्या महत्व है। हर मंदिर के पीछे एक महान कहानी होती है। उनमें से प्रत्येक में एक “स्थल पुराण” और “स्थल भाव” भी जुड़ा हुआ होता है। यह स्थानीय लोगों के जीवन काल का हिस्सा भी होता है।
कई मंदिर या आराधना स्थल ऐसे भी हैं जिनका सिंधु घाटी से लेकर वैदिक काल तक और मगध काल से लेकर मौर्य व गुप्त काल तक के बाद भी भारतीय सभ्यता व संस्कृति का सदियों पुराना अपना एक इतिहास रहा है। मुहम्मद बिन कासिम और महमूद गजनवी से लेकर बाबर और औरंगजेब तथा उसके बाद अंग्रेजों तक ने हमारी सभ्यता व संस्कृति की इन पहचानों को मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन उनके ये सभी नापाक मंसूबे विफल साबित हुए। इसकी व्यापक वजह हम भारतीयों की आध्यात्मिकता और धर्म के प्रति आस्था थी। इस आस्था के केंद्र में हमारी सनातन संस्कृति, जिसे संजोकर रखने में हमारे मंदिरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज हम हिंदुस्तान के किसी भी कोने में जाएं, हमें हर गली व चौराहे पर कोई ना कोई मंदिर जरूर मिल जाता, जो इस बात की तस्दीक भी करते हैं।
आज जिस प्रकार से भारतीय संस्कृति आधुनिकीकरण की ओर जा रही है, यह भी एक प्रमुख कारण है कि हम इस प्राचीन महत्व को पीछे छोड़ते चले जा रहे हैं। हम यहां ऐसे ही मंदिरों की कहानी आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। ये ना सिर्फ बहुत प्राचीन हैं बल्कि जिस क्षेत्र में वे विद्यमान हैं, वहां उनका एक अनूठा चरित्र है। अपना एक इतिहास है। हमारा लक्ष्य ऐसे लाखों अद्वितीय मंदिरों के महात्म्य से नयी पीढ़ी को अवगत कराना और उन्हें भारत की प्राचीन आध्यात्मिक केंद्रों से जुड़ने के लिए प्रेरित करना है।